________________
192
जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
'ब्रह्मचर्य' शब्द 'ब्रह्म' और 'चर्य'- इन दो शब्दों के संयोग से बना है। ब्रह्म का अर्थ है - आत्मा की शुद्ध दशा; चर्य का अर्थ है – आचरण । आत्मा के शुद्ध स्वभाव को प्राप्त करने वाला आचरण ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य की साधना परमात्मस्वरूप की साधना है। ब्रह्मव्रत की साधना का अर्थ मन-वचन एवं काया से वासनारूपी कर्म-बीज का उन्मूलन करना है। 923 यद्यपि ब्रह्मचर्य का महाव्रतों की परिगणना में चतुर्थ क्रम है, तथापि वह अपनी अद्भुत महिमा और गरिमा के कारण सभी व्रतों में प्रथम स्थान रखता है। "तं बंभ भगवंतं तित्थयरे चेव जहा मुणीणं,324 अर्थात् ब्रह्मचर्य स्वयं भगवान् है। जैसे श्रमणों में तीर्थंकर सर्वश्रेष्ठ है, वैसे ही व्रतों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है। एक ब्रह्मचर्य-व्रत की जो आराधना कर लेता है, वह समस्त व्रत-नियमों की आराधना कर लेता है। समस्त व्रत, नियम, तप, शील, विनय, सत्य, संयम आदि की साधना का मूल आधार ब्रह्मचर्य को माना गया है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है - इन्द्रियों की अपने-अपने विषयों के प्रति रही हुई आसक्ति समाप्त करना। प्रश्नव्याकरणसूत्र 325 में बत्तीस उपमाओं द्वारा ब्रह्मचर्य की श्रेष्ठता स्थापित की गई है, जो निम्न हैं -
1. जिस प्रकार समस्त ग्रहों, नक्षत्रों और तारों में चन्द्रमा प्रधान होता
है, उसी प्रकार समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। 2. मणि, मुक्ता, शिला, प्रवाल और लाल (रत्न) की उत्पत्ति के स्थानों
(खानों) में समुद्र प्रधान है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य सर्व व्रतों का श्रेष्ठ
उद्भव-स्थान है। 3. ब्रह्मचर्य मणियों में वैदूर्यमणि के समान उत्तम है। 4. ब्रह्मचर्य आभूषणों में मुकुट के समान है। 5. ब्रह्मचर्य समस्त प्रकार के वस्त्रों में क्षौमयुगल-कपास के वस्त्रयुगल ___के सदृश है। 6. ब्रह्मचर्य पुष्पों में श्रेष्ठ अरविन्द (कमल) पुष्प के समान है। 7. ब्रह्मचर्य चन्दनों में गोशीर्ष चन्दन के समान श्रेष्ठ है। 8. जैसे औषधियों, चमत्कारिक वनस्पतियों का उत्पत्ति स्थान हिमवान्
पर्वत है, उसी प्रकार आमशौषधि की उत्पत्ति का स्थान ब्रह्मचर्य है।
323 गांधी वाणी, पृ. 19 324 प्रश्नव्याकरणसूत्र, संवरद्वार-4 325 प्रश्नव्याकरणसूत्र, संवरद्वार–अध्ययन 4
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org