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________________ 14 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व कृतज्ञता ज्ञापन सर्वप्रथम मैं हृदय की असीम आस्था के साथ नतमस्तक हूँ धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले परमतारक सिद्ध, बुद्ध, निरंजन, निराकार परमात्मा एवं उनके शासन को, जिन्होंने अपनी साधना के माध्यम से केवलज्ञान के आलोक को उपलब्ध किया एवं उनकी कल्याणकारिणी वाणी के प्रति, जो मेरी श्रुतसाधना के अवलंबन बने, मेरी दर्शन–विशुद्धि, आत्मविशुद्धि के साथ इस कृति के सर्जन का भी आधार बने हैं। इस शोध-कार्य की सम्पन्नता महान् आत्मसाधिका, भाववत्सला प.पू. गुरूवर्या श्री अनुभवश्रीजी म.सा. की दिव्य कृपा के बिना संभव नहीं थी। उनकी अदृश्य प्रेरणा ही मेरे आत्मविश्वास का अटल आधार बनी। प.पू. सुप्रसिद्ध व्याख्यात्री गुरूवर्या श्री हेमप्रभाश्रीजी म.सा. (सांसारिक भुआजी म.सा.) की पावन स्मृति मेरी आत्मतृप्ति का अलौकिक अमृत है, वे मेरी चेतना हैं..... वे मेरी प्रेरणा हैं, दीक्षा दात्री हैं एवं जिनका शिष्यत्व मेरे लिए गौरव का विषय है। गुरु समर्पिता विनीतप्रज्ञाश्रीजी म.सा. जिनकी प्रेरणा ही मेरे अध्ययन का आधार थी, परंतु कालचक्र के क्रूर प्रहार ने गुरूवर्याश्री को और उन्हें मुझसे अलग कर दिया। मैं उनके साथ अल्पावधि तक ही रह पाई, उनकी अदृश्य प्रेरणा ही मेरे आत्मविश्वास का आधार है, उनका मंगलमय आशीर्वाद मेरे जीवन पथ को सदा आलोकित करता रहे, इन्हीं आकांक्षाओं के साथ आराध्य चरणों में अनन्तशः वंदना समर्पित ....। जिनके आशीर्वाद , एवं स्नेह की मुझे सदा अपेक्षा है; प.पू. सुदीर्घसंयमी विनोदश्रीजी म.सा. (सांसारिक बड़ी भुआजी म.सा.) एवं प.पू. आदर्श संयमी सेवामूर्ति विनयप्रभाश्रीजी म.सा.। मेरी आत्मीय गुरुभगिनी कोकिलकंठी श्री कल्पलताश्रीजी म.सा. जिन्होंने लंबी अवधि से अधूरे रहे इस शोधकार्य को पूर्ण करने हेतु प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भी मुझे शाजापुर भेजा, वह मेरे प्रति उनके अनन्य स्नेह का साक्षी है। वे मेरे अपने हैं, उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर परायेपन की प्रतीति कराने का अक्षम्य अपराध नहीं करूंगी, आपका स्नेहिल सहयोग मुझे सदा मिलता रहे, यही शुभाकांक्षा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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