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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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इच्छाओं एवं विचारों को दैनिक जिन्दगी में पूर्ण करना संभव नहीं हो पाता, अतः उनको दमित {repress} कर दिया जाता है, जहाँ जाकर ऐसी इच्छाएँ समाप्त नहीं होती, परंतु थोड़ी देर के लिए निष्क्रिय अवश्य हो जाती हैं और चेतन में आने का भरसक प्रयास भी करती हैं।
फ्रायड के अनुसार, अचेतन अनुभूतियों एवं विचारों का प्रभाव हमारे व्यवहार पर चेतन एवं अर्द्धचेतन की अनुभूतियों एवं विचारों से अधिक होता है। यही कारण है कि फ्रायड ने अपने सिद्धान्त में अचेतन को चेतन एवं अर्द्धचेतन की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण एवं बड़ा {large] आकार का बताया है।
चेतन
Conscious}
अर्द्धचेतन
{Subconscious
अचेतन
. {Unconscious}
फ्रायड की मान्यता यह है कि यह कामतत्त्व (लिबिडो) अचेतन मन में निवास करता है और सत्ता के रूप में वहाँ रहकर भी चेतन, अर्द्धचेतन (अवचेतन) स्तर पर अपनी अभिव्यक्ति का प्रयत्न करता है।
फ्रायड और जैनदर्शन - दोनों में एक समानता इस बात को लेकर भी है कि दोनों ही अर्द्धचेतन (अवचेतन) या चेतन में रहे हुए इन काम-संस्कारों के दमन के समर्थक न होकर इनके निरसन के समर्थक हैं।
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