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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
विभाग किए हैं - चेतन (Conscious}, अर्द्धचेतन {Subconscious) और अचेतन {Unconscious} 100
चेतन {Conscious} -
चेतन से तात्पर्य मन के ऐसे भाग से होता है, जिसमें वे सभी अनुभूतियाँ होती हैं, जिनका संबंध वर्तमान से होता है। दूसरे शब्दों में, चेतन क्रियाओं का सम्बन्ध तात्कालिक–अनुभवों से होता है, फलतः चेतनं व्यक्तित्व के छोटे एवं सीमित पहलू का प्रतिनिधित्व करता है। किसी भी क्षण व्यक्ति के मन में आ रही अनुभूतियों Experiences} का सम्बन्ध उसके चेतन से ही होता है।
अर्द्धचेतन {Subconscious} -
अर्द्धचेतन से तात्पर्य ऐसे मानसिक-स्तर से होता है, जो सचमुच में न तो पूर्णतः चेतन होता है और न ही पूर्णतः अचेतन। इसमें वैसी इच्छाएँ, विचार, भाव आदि होते हैं, जो हमारे वर्तमान चेतन या अनुभव में नहीं होते हैं, परन्तु प्रयास करने पर वे हमारे चेतन मन (Conscious mind} में आ जाते हैं। आलमारी में हम अमुक किताब को नहीं पाते और थोड़ी देर के लिए परेशान हो जाते हैं, फिर कुछ सोचने पर याद आती है कि उस किताब को तो हमने अपने मित्र को दे दिया था। वह अर्द्धचेतन मन का उदाहरण होगा। फ्रायड के अनुसार, अर्द्धचेतन चेतन और अचेतन क्षेत्र के बीच एक पुल bridge} का काम करता है।
अचेतन (Unconscious} -
__ अचेतन का शाब्दिक अर्थ है -जो चेतन या चेतना से परे हो। हमारे कुछ अनुभव इस प्रकार के होते हैं, जो न तो हमारी चेतना Consciousness} में होते हैं और न ही अर्द्धचेतन Subconscious} में। ऐसे अनुभव अचेतन में होते हैं। अचेतन मन में रहने वाले विचार एवं इच्छाओं का स्वरूप कामुक {Sexual}, असामाजिक fantisocial}, अनैतिक immoral} तथा घृणित {hateful} होता है। चूंकि ऐसी
308 आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान, अरुणकुमार सिंह आशीषकुमार सिंह, पृ. 570
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