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________________ 180 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व वेद के दो प्रकार हैं - 1. द्रव्यवेद, 2.भाववेद 298 | द्रव्यवेद का निर्णय शरीर के बाह्य चिह्नों से किया जाता है। अंगोपांग नामकर्म के उदय से स्त्री, पुरुष और नपुंसक अवयवों को द्रव्य-वेद कहते हैं, जैसेपुरुष-द्रव्यवेद में पुरुष के चिह्न दाढ़ी, मूंछ आदि तथा स्त्री के चिह्नों में दाढ़ी-मूंछ का अभाव और स्त्री-लिंगाकृति का सद्भाव। नपुंसक में स्त्री-पुरुष- दोनों के कुछ चिह्न। ज्ञातव्य है कि द्रव्यवेद और लिंग एकार्थक हैं। संवेदना, अभिलाषा, इच्छा भाववेद हैं। 299 मोहनीय कर्म के उदय से स्त्री को पुरुष के साथ कामभोग की इच्छा स्त्रीभाववेद, पुरुष को स्त्री के साथ कामभोग की इच्छा पुरुषभाववेद तथा स्त्री और पुरुष- दोनों के साथ कामभोग की इच्छा को नपुंसकभाववेद कहते हैं। 300 द्रव्यवेद और भाववेद सहभावी होते हैं, परन्तु कहीं-कहीं विषमता भी पाई जाती है, यानी बाह्यशरीर, आकृति और चिह्न पुरुष के होते हैं, लेकिन भाव स्त्री या नपुंसक जैसे होते हैं। वेद का स्वरूप काम-वासना की तीव्रता की दृष्टि से जैन–विचारकों के अनुसार पुरुष की काम-वासना शीघ्र ही प्रदीप्त हो जाती है और शीघ्र ही शान्त हो जाती है। स्त्री की कामवासना देरी से प्रदीप्त होती है और प्रदीप्त हो जाने पर पर्याप्त समय तक शान्त नहीं होती। नपुंसकवेद की कामवासना शीघ्र प्रदीप्त हो जाती है, लेकिन शान्त देरी से होती है।301 स्त्रीवेद - स्त्रीवेद कंडे की अग्नि और बकरी के मल की अग्नि के समान कहा गया है। गोबर और बकरी का मल विलम्ब से प्रज्ज्वलित होता है, किन्तु एक बार प्रज्ज्वलित होने के बाद उसका ताप उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। ठीक उसी प्रकार, स्त्री के मन में पुरुष के साथ कामभोग की इच्छा 298 कर्मग्रंथ चतुर्थ भाग, मुनि श्री मिश्रीमल जी म., पृ. 114 299 भगवई विआहपण्ण्ती - आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 259 300 दण्डक प्रकरण, मुनि मनितप्रभसागर, पृ. 550 301 जैन साइकॉलाजी, पृ. 131-134 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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