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भाव - काम
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भाव - काम दो प्रकार के हैं इच्छा - काम और मदन- काम । चित्त की अभिलाषा, आकांक्षा रूप काम को इच्छाकाम कहते हैं । इच्छा भी दो प्रकार की होती है प्रशस्त और अप्रशस्त । 266 धर्म और मोक्ष से सम्बन्धित इच्छा प्रशस्त है, जबकि युद्ध, कलह, राज्य की कामना या दूसरे के विनाश की कामना आदि इच्छाएं अप्रशस्त हैं । वेदोपयोग को मदनकाम कहते हैं। 208 स्त्री के द्वारा स्त्री - वेदोदय के कारण पुरुष के भोग की अभिलाषा करना, पुरुष द्वारा पुरुष - वेदोदय के कारण स्त्री के भोग की अभिलाषा करना तथा नपुंसकवेद के उदय के कारण नपुंसक द्वारा स्त्री और पुरुष - दोनों के भोग की अभिलाषा करना तथा विषयभोग में प्रवृत्ति करना मदनकाम है। 269 नियुक्तिकार कहते हैं - " विषयसुख में आसक्त एवं कामराग में प्रतिबद्ध जीव को धर्म से गिराते हैं। पण्डित लोग काम को एक प्रकार का रोग कहते हैं। जो जीव कामों की प्रार्थना (अभिलाषा) करते हैं, वे अवश्य ही रोगों की प्रार्थना करते हैं ।"
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काम का मूल और उसके परिणाम
शास्त्रकारों ने काम का मूल संकल्प को कहा है। संकल्प का अर्थ काम - अध्यवसाय है । 271 दशवैकालिक में कहा है जो व्यक्ति कामभोगों का निवारण नहीं कर पाता, वह संकल्प के वशीभूत होकर पद-पद पर विषादः पाता हुआ श्रामण्य - जीवन का कैसे पालन कर सकता है ? 272 काम के अर्थ को स्पष्ट करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि संकल्प - विकल्पों से
जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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264 विहाय भावकामा इच्छाकामा मयणकामा। - नियुक्ति, गाथा. 162
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तत्रेषणमिच्छा सैव चित्ताभिलाषरूपकामा इतीच्छाकामा
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इच्छां पसत्थभपसत्थिगा य ---- । निर्युक्ति, गाथा. 163
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तत्थ पसत्था इच्छा जहा धम्मं कामयति मोक्खं कामयति, अपसत्था इच्छा
जिन चूर्ण, पृ. 76
रज्जं वा कामयति जुद्धं वा कामयति एवमादि इच्छाकामा । मयणमि वेयउवओगी। - नियुक्ति, गाथा. 163
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वही, गा. 162 हा.टी. पृ. 85
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जहा इत्थी इत्यिवेदेण पुरिस पत्थेइ पुरिसोवि इत्थी, एवमादी - जिन चूर्णि, पृ. 76
270 निर्युक्ति, गाथा - 164-165
271 संकप्पोति वा छंदोति वा कामज्झवसायो - जिनदासचूर्णि, पृ. 78
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दशवैकालिकसूत्र - 2/1
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