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2. आवाज से (Noises)
जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
2. भयमोहनीय कर्म के उदय से
3. आने वाली आपत्ति की सूचना से 3 भयोत्पादक वचनों को सुनकर (Threats)
4. आश्चर्यजनक वस्तु को देखकर 4. भय - संबंधी घटनाओं के चिन्तन (Strange Things) से ।
आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार भय से बचने के लिए विशेष प्रकार की औषधि आदि का सेवन किया जाता है, लेकिन जैनदर्शन में भय - मुक्ति के लिए प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा, स्वाध्याय और ध्यान पर अधिक बल दिया जाता है ।
इस प्रकार, जैनदर्शन और आधुनिक मनोविज्ञान में भय - संवेग को लेकर बताया गया है कि भय दोनों ही दर्शनों में है, पर व्यवहार - रूप से इनमें अन्तर दिखाई देता है, लेकिन मूल में भय की प्रवृत्ति समान ही है ।
भय मुक्ति और अभय की साधना
भय एक तीव्र संवेग है । जब भय की स्थिति होती है, उस समय आदमी की मुखमुद्रा निराशापूर्ण और अशांत होती है। यहाँ मुद्रा से तात्पर्य चेहरे की आकृति से है। डरे हुए आदमी के पास कोई दूसरा जाकर बैठेगा, उसके मन में भी अचानक बैचेनी पैदा हो जाएगी। यह क्यों हुआ, कैसे हुआ? उसे पता नहीं चलेगा, पर वह बैचेन बन जाएगा । अभय का भाव जब-जब जागता है, तब-तब अभय की मुद्रा का निर्माण होता है। अभय की मुद्रा का बाहरी लक्षण है प्रफुल्लता (Happiness)। इसमें चेहरा खिल जाता है, व्यक्ति प्रसन्न, आनन्दमय और निर्भय प्रतीत होता है। उसके चेहरे पर कोई समस्या, कोई तनाव नजर नहीं आता है। जब 'भय' की भाव-धारा होती है, तो हमारे शरीर का सिम्पेथैटिक नर्वस सिस्टम
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193 "Emotions are inciters to action" Geldard Fundamentals of psychology, 1963, P. 33
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