SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 137 मानता है कि यह उचित नहीं। भय से डरना नहीं चाहिए, क्योंकि भयभीत मनुष्य के पास भय शीघ्र आता है।189 । भय के प्रकारों को लेकर भी जैनदर्शन में गंभीरता से विचार किया गया है। जैनदर्शन में भय के सात प्रकार 190 बताए गए हैं - 1. इहलोक-भय, 2. परलोक- भय, 3. आदान-भय, 4. अकस्मात्-भय. 5. आजीविका-भय, 6. अपयश-भय और 7. मरण-भय, लेकिन आधुनिक मनोविज्ञान की पुस्तकों में न तो इस प्रकार का वर्गीकरण उपलब्ध होता है और न ही उन प्रकारों पर गहन चिन्तन की प्रस्तुति देखने को मिलती है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक शारीरिक-संवेदना को ही भय का कारण मान रहे हैं, किन्तु जैनदर्शन के अनुसार भय के संस्कार अनादिकाल से हमारी चेतना में गुप्त रूप से विद्यमान हैं। आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार भय-संवेग के कारण व्यक्ति अशान्त और शंकाग्रस्त बन जाता है और उसकी मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है, पर जैनदर्शन यह मानता है कि भय के कारण व्यक्ति अहिंसक-वृत्ति को प्राप्त नहीं कर सकता। बिना अहिंसक बने धर्म-साधना और मुक्ति सम्भव नहीं है। आधुनिक मनोविज्ञान में भय की उत्पत्ति के चार कारण बताए गए हैं और जैनदर्शन में भी चार कारणों का उल्लेख है, पर दोनों के कारणों में भिन्नता है। __ आधुनिक मनोविज्ञान91 जैनदर्शन192 1. जानवरों से (Animals) | 1. सत्त्वहीनता के कारण 199 ण भाइयाब्वं, मीतं खु भया अइंति लहुयं। - प्रश्नव्याकरणसूत्र 2/2 190 सम्माद्दिट्टी जीवा णिस्संका होति विघ्भया तेण। सत्तभयविप्पमुक्का जम्हा तम्हा दु णिस्संका।। - समयसार, गाथा 228 191 Basic Psychology, P.101 192 स्थानांगसूत्र - 4/580 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy