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________________ 136 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व लोग कैसे जाने ? कैसे माने ? कि मैं भी कुछ हूँ। बस यही भय व्यक्ति के हृदय में होता है और पर पदार्थों में अपने अस्तित्व को खो देता है। इस प्रकार, भारतीय-मनोविज्ञान ने भय को विभिन्न रूपों में बताया है। आधुनिक मनोविज्ञान में भय की अवधारणा और उसकी जैनदर्शन से तुलना जैनदर्शन में जो संज्ञा की अवधारणा है, वह वस्तुतः प्राणी-व्यवहार के प्रेरक तत्त्व के रूप में है। आधुनिक मनोविज्ञान में व्यवहार के प्रेरक के रूप में मूलप्रवृत्तियाँ (Instincts) और संवेग (Emotions) माने गए हैं। जिस प्रकार जैनदर्शन में आहारसंज्ञा के बाद भयसंज्ञा का उल्लेख है, उसी प्रकार आधुनिक मनोविज्ञान में भी भूख की मूल-प्रवृत्ति के पश्चात् भय को स्थान दिया गया है। मैकड्यूगल (McDougall) ने जिन चौदह मूल प्रवृत्तियों का उल्लेख किया है, उनमें भय का भी, उल्लेख मिलता है। ये चौदह मूल प्रवृत्तियाँ निम्न हैं 188 - 1. पलायनवृत्ति (भय), 2. घृणा, 3. जिज्ञासा, 4. आक्रामकता (क्रोध), 5. आत्म-गौरव की भावना (मान), 6. आत्महीनता, 7. मातृत्व की संप्रेरणा, 8. समूह-भावना, 9. संग्रहवृत्ति, 10. रचनात्मकता, 11. भोजनान्वेषण, 12. काम, 13. चरणागति और 14. हास्य (आमोद)। आधुनिक मनोविज्ञान यह मानता है कि भय की निवृत्ति के लिए प्राणी पलायन करता है, जबकि जैनदर्शन यह मानता है कि भय से मुक्ति के लिए व्यक्ति को अभय का विकास करना होगा। आधुनिक मनोविज्ञान और विशेष रूप से मैकड्यूगल मूलप्रवृत्ति के रूप में भय को स्वीकार तो करते हैं, किन्तु वे यह मानते हैं कि भय से मुक्ति संभव नहीं, जबकि जैनदर्शन का कहना है कि अभय का विकास कर और ममत्व का त्याग कर व्यक्ति भय से विमुक्त हो सकता है। ___ जैनदर्शन और आधुनिक मनोविज्ञान में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह भी है कि आधुनिक मनोविज्ञान भय से मुक्ति के लिए पलायन को स्थान देता है, जबकि जैनदर्शन प्राणी में पलायन-वृत्ति को स्वीकार करके भी यह 188 जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों तुलनात्मक अध्ययन, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 462 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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