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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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फौज एवं सुरक्षा विभाग पर व्यय होता है। मनोवैज्ञानिक सत्य यह है कि भयभीत व्यक्ति ही आक्रमण करता है, भयरहित व्यक्ति ही हिंसारहित होता है। यह 'इहलोक-भय' आदमी से विभिन्न सुरक्षात्मक-उपायों की खोज करवाता है और विविध तकनीकी एवं यांत्रिकी विकास का जन्मदाता होता है। इसके कारण ही, युद्ध में प्रयुक्त हो सकें, ऐसे उपकरणों के अनुसंधान में प्रत्येक राष्ट्र प्रयत्नशील रहता है। एटम बम, टाइम बम, मिसाइलें एवं अन्य अस्त्र-शस्त्रों का आविष्कार इहलोक-भय का ही परिणाम है।
2. परलोक भय -
मनुष्य को पशु-पक्षी, देव आदि की तरफ से लगने वाला भय परलोक-भय है। यहाँ परलोक से तात्पर्य विजातीय जीवों से होने वाले भय
से है।
इस भय से ग्रस्त हो मनुष्य पाखण्ड करता है। अंध–विश्वास, बलि-कर्म, आडम्बर, मिथ्या पूजापाठ आदि इसी भय की देन हैं। प्राचीन युग में मनुष्य प्राकृतिक आपदाओं (वर्षा, बाढ़, बिजली गिरना, हिमपात आदि में भी दैवीय शक्ति की कल्पना किया करता था और आज भी यह संस्कार कई जातियों में हैं। प्राचीनकाल से ही प्राकृतिक विपदाओं से स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए विविध क्रियाकाण्ड कर देवों को प्रसन्न करने के प्रयत्न किए जाते रहे हैं। पितर-पूजा, श्राद्ध आदि कर आदमी इस भय से मुक्त होने की कल्पना किया करता है। इस प्रकार, 'परलोक-भय' का प्रभाव हमारे साहित्य, धर्मग्रन्थ एवं उनकी व्याख्याओं पर भी पड़ा है। आज विज्ञान के विकास ने मनुष्य को काफी हद तक इस परलोक-भय की कल्पना से मुक्त किया है। .
3. आदान-भय -
आदान-भय, अर्थात् चोरी हो जाने या सब कुछ चले जाने का . भय। स्वयं की धन, सम्पत्ति, सामान आदि की चोरी हो जाने या नष्ट हो जाने का भय आदान-भय है।
यह डर हर संग्रहशील व्यक्ति में रहता है। बच्चे भी स्वयं की वस्तु की बहुत सुरक्षा करते हैं। उनके कपड़े-खिलौने आदि कोई अन्य न ले लें, इस प्रकार का भय बाल्यकाल से ही प्रारंभ हो जाता है। 'मृत्यु सब कुछ
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