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________________ 124 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व सुरक्षात्मक-उपायों से कल्पित आश्वासन खड़े करता है, जबकि अज्ञानवश यह नहीं जान पाता कि बाह्य-तत्त्व इस जीव को कहीं भी शरणभूत नहीं हो सकते हैं, क्योंकि हर भौतिक साधन अनित्य एवं असुरक्षित है। इन भूत एवं भविष्यकालीन भयों का वर्गीकरण करते हुए पूर्वाचार्यों ने सप्तविध भय प्रतिपादित किए हैं। प्राचीन जैनग्रंथ 'मूलाचार180 में भय के सात प्रकार बताये हैं, जो निम्न हैं - ____ 1. इहलोक-भय, 2. परलोक-भय, 3. आदान-भय, 4. अकस्मात्-भय, 5. आजीविका-भय, 6. अपयश-भय, और 7. मरणभय। 1. इहलोक-भय - इहलोक, अर्थात् यह लोक (Present World)। जहाँ हम रह रहे हैं, वहाँ अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए भयभीत होना, अपनी ही जाति के प्राणियों से डरना इहलोक-भय है। राजा, शत्रु, चोर आदि अन्य मनुष्यों से होने वाला भय इहलोक-भय कहलाता है। इहलोक-भय से आक्रान्त मनुष्य क्रोध करता है। यह क्रोध भी विषम एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वयं को बचाने का, स्वयं को स्थापित करने का तरीका मात्र है। जितनी भी सामाजिक-हिंसाएँ हैं, वे सब इहलोक के भय के कारण ही हैं। एक संस्था का दूसरी संस्था के साथ कलह, एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र के साथ बैर, इहलोक-भय के उदाहरण हैं। प्रत्येक राष्ट्र अपने यहाँ सुरक्षा विभाग (Defence Department) रखता है। मानव स्वयं भयभीत है, इसलिए युद्ध करता है और उस युद्ध को सुरक्षा का नाम देता है। यदि हर राष्ट्र अपनी सुरक्षा ही करता है, तो फिर आक्रमण कौन करता है ? हर देश की राष्ट्रीय आय का बहुतांश 180 इहपरलोयत्ताएं अणुत्तिमरणं च वेयणाकस्सि भया - मूलाचार, गाथा 53 । (1) समयसार/आत्मख्याति, गाथा-228 (2) पंचाध्यायी, उत्तरार्द्ध, श्लोक - 504-505 (3) दर्शनपाहुड-2, पं. जयचन्द्र (4) राजवार्त्तिक, हिन्दी, अध्याय - 6/24/517 इह परलोयाऽऽयाणा-मकम्ह आजीव मरण मसिलोए।। सत्त भयट्ठाणाई इमाइं सिद्धतभणियाई।। - प्रवचनसारोद्धार, द्वार 234, गाथा 1320 (6) सत्त य भयठाणाई ...........-पाक्षिकसूत्र, गाथा 33 (7) सात महाभय टालतो सप्तम जिनवर देव -योगीराज आनंदघनजी, श्री सुपार्श्वनाथ स्तवन, गाथा 2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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