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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 119 5. अचानक भय की स्थिति में आदमी का उछल पड़ना या उसके मुँह से चीख निकल जाना, जैसे- छिपकली अचानक हमारे शरीर पर गिरती है, तो डर के कारण चीख निकल जाती है और हृदय की धड़कनें तीव्र हो जाती हैं। जैनदर्शन के अनुसार, भयसंज्ञा केवल मनुष्यों में ही नहीं, वरन जगत् के प्रत्येक प्राणी में व्याप्त है। कल तक यह बात केवल शारीरिक-आचार से ही मानी जाती थी, लेकिन आज आधुनिक विज्ञान इस तथ्य को अपने यंत्रों से भी सिद्ध करते हैं। वैज्ञानिकों ने अब ऐसे सूक्ष्म यंत्र भी विकसित कर लिए हैं, जो हमारे भीतरी भावों में होने वाले परिवर्तनों के कंपनों को ग्रहण कर सकें। यदि किसी व्यक्ति के सामने अचानक कोई दुष्ट आदमी छुरा लेकर खड़ा हो जाए, तो उस व्यक्ति के रोम-रोम में भय का संचार हो जाएगा। उसके शरीर की विद्युत-तरंगें एक खास ढंग से कंपित होने लगेंगी। वह कंपन उसके पास स्थित विद्युत-यंत्रों में स्पष्ट दिखाई देगा। यदि व्यक्ति उस समय विश्वास से भरा हुआ होगा, तो उसके शरीर में कुछ अन्य तरह के कंपन होंगे। व्यक्ति आश्चर्यजनक स्थितियों से, अथवा भयानक स्थितियों से भरा हुआ है, तो उसकी प्राण-विद्युत के प्रवाह में भी एक अलग प्रकार का कंपन होता है। ये सारे कंपन न केवल मनुष्यों में, वरन् पशुओं एवं वृक्षों में भी भिन्न-भिन्न भाव-दशाओं में भिन्न-भिन्न तरह से पाये जाते हैं- ऐसा जैव-वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षण द्वारा सिद्ध किया है। उनका कहना है कि एक गमले में रखे पौधे के पास यदि कोई आदमी छुरा लेकर उस पौधे को काटने के भाव से जाता है, तो वह पौधा ठीक उसी तरह कंपित होता है, जिस तरह मनुष्य भयग्रस्त होने पर कंपित होता है। इस प्रयोग के विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि जब भयसंज्ञा के कारण . उपस्थित होते हैं, तो प्राणी शारीरिक और मानसिक रूप से विचलित और कंपित हो जाता है। भयग्रस्त प्राणी हिंसात्मक-प्रवृत्तियों में लीन हो जाने से वह अपने अस्तित्व को भी भूल जाता है। स्थानांगसूत्र के अनुसार, भय-उत्पत्ति के चार प्रमुख कारणों का उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है, लेकिन आधुनिक मनोविज्ञान एवं व्यवहार की दृष्टि से भय-उत्पत्ति के निम्न कारण भी हो सकते हैं - 1. पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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