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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व ___113 113 4. भय संबंधी घटनाओं के चिन्तन से। 1. सत्त्वहीनता, अर्थात् किसी प्रकार अवसाद से - इस प्रसंग में सत्त्वहीनता से तात्पर्य है -बल, साहस, हिम्मत, शक्ति आदि की हीनता का विचार, अर्थात् जब व्यक्ति में बल, शक्ति, साहस का अभाव होता है। प्राणी के सामने अपने से अधिक बलवान् प्राणी की उपस्थिति भय को उत्पन्न करती है, क्योंकि तब वह अपने अस्तित्व के रक्षण के लिए भयग्रस्त बन जाता है, जैसे –सिंह को अपने सामने उपस्थित पाकर सभी डरते हैं, उसकी दहाड़-मात्र से जंगल में सन्नाटा छा जाता है, सभी प्राणी भय के कारण अपने-आपको छिपा लेते हैं, चूंकि सिंह के सामने अन्य वन्य-प्राणी अपने आपको शक्तिहीन समझते हैं, इस कारण वे भयग्रस्त होते हैं। ठीक उसी प्रकार, चूहा बिल्ली से, बिल्ली कुत्ते से, श्वान गाय से; गाय शेर से, शेर शिकारी से, शिकारी पुलिस से, पुलिस बड़े अधिकारी से, बड़े अधिकारी मंत्री से, मंत्री प्रधानमंत्री से और प्रधानमंत्री जनता से - इस प्रकार भय का यह चक्र चलता ही रहता है। आज भी लोग निर्धनता से, इज्जत के चले जाने से डरते हैं और जीवन भर सुरक्षा के उपाय करते चले जाते हैं, किन्तु सुरक्षा के ये साधन स्वयं असुरक्षित बनाते हैं तथा व्यक्ति भयग्रस्त बने रहते हैं। मनुष्य ने अपने को भय से बचाने के लिए शस्त्रों का आविष्कार किया और एक से बढ़कर एक भयानक अस्त्र-शस्त्र बनाए, किन्तु फिर भी वह असुरक्षित ही पाया गया। - इस तथ्य को भगवान् महावीर ने पहले ही अपने ज्ञान से देख लिया था। आचारांगसूत्र में वे कहते हैं -"अत्थि सत्यं परेण परं नत्थि असत्यं परेण परं", अर्थात्, अहिंसा या अभय से बड़ा कोई शस्त्र नहीं है, अतः भय से मुक्ति का एक ही मार्ग है- अभय का विकास। 2. भयमोहनीय-कर्म - कर्मग्रन्थ में मोहनीयकर्म के दो भेद किये गये हैं –1. दर्शनमोहनीय 2. चारित्रमोहनीय। पुनः, दर्शनमोहनीय कर्म के तीन भेद - 1. सम्यक्त्वमोहनीय, 2. मिश्रमोहनीय, 3. मिथ्यात्वमोहनीय । चारित्रमोहनीय के 168 आचारांगसूत्र, - 1/3/4 जस्सुदया होइ जीए, हास रइ अरइ सोग भय कुच्छा। सनिमित्तमन्नहा वा, तं. इह हासाइ मोहणीयं। - प्रथम कर्मग्रंथ, गाथा 21 169 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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