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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व गए, या हमें उन सबको छोड़कर जाना पड़ेगा। यह अनुभव हमारे लिए दुःखद होता है, अतः उसकी स्मृति हमें मृत्यु से भयभीत बनाती है। मृत्यु से भय का दूसरा कारण यह भी है कि मृत्यु बड़ी अनिश्चित है, उसके आने का समय किसी को ज्ञात नहीं है । कुछ स्थितियों में मृत्यु अज्ञात है, इसलिए भी वह भयोत्पादक है, क्योंकि जीवन में जो भी अज्ञात होता है, वह सब व्यक्ति को भयभीत बना देता है। रेलगाड़ी की पटरियों की तरह जीवन सीधा - सपाट नहीं होता । वह तो सदा अनिश्चित ही है, किन्तु इस तथ्य को स्वीकार न कर पाने के कारण मानव - मन सदा भयग्रस्त बना रहता है I 111 प्राणी जितना अधिक भयभीत होगा, वह उतना ही हिंसक होगा। साँप, बिच्छू या जहरीले जानवर ने एक बार किसी को काट लिया और उसकी मृत्यु हो गई। बस, यह बात उसके मन में बैठ गई, तो वह जब-जब साँप, बिच्छू आदि हिंसक प्राणियों को देखेगा, उन्हें मारने का प्रयास करेगा। इस प्रकार, भयग्रस्त प्राणी हिंसात्मक प्रवृत्तिवाला हो जाता है । बच्चों के कोमल हृदय में भय का संचार स्वयं उनके माता-पिता ही करते हैं। कई माताएं बच्चों में अकारण ही ऐसे ही भय के संस्कार भर देती हैं और बच्चों को डराती रहती हैं कि कुएं के पास जाओगे, तो उसमें गिर जाओगे, पेड़ पर चढ़ोगे तो गिरने से चोट लग जाएगी, अंधेरे में भूत पकड़कर ले जाएगा, अकेले घर से बाहर गए, तो पुलिस पकड़ ले जाएगी आदि । ऐसी अनेक भयग्रस्त बातों से बच्चों के मानस पटल पर भय की छबि अंकित हो जाती है और जब इस प्रकार के प्रसंग सामने आते हैं, तो वह बच्चा भयभीत हो जाता है । इस प्रकार के भय के संस्कार बालक को कायर ( डरपोक) बना देते हैं । समाज का भय व्यक्ति को भययुक्त बनाता है। कितने-कितने आडम्बर, आरंभ-समारंभ शादी-पार्टी आदि में इस भय से किये जाते हैं कि लोग क्या कहेंगे? लोक एवं समाज के भय के कारण हैसियत न होते हुए भी अपना नाम ऊँचा रखने के लिए, न चाहते हुए भी, व्यक्तियों द्वारा बहुत सारे आरंभ-समारंभ (कार्य) किये जाते हैं। दूसरी ओर, लोग आपकी प्रशंसा करें, आपका नाम लें, इस भय के कारण वे भय से युक्त बने रहते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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