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________________ तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक - कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ ८३ # # #中PH P + M YYYYYYY1-FF इसका दूसरा नाम (छेवट्ट की संस्कृत छाया) छेद वृत्त भी है जिसका अर्थ जैसे कागजों में छेद करने पर कुछ चिपक जाते हैं किन्तु थोड़ासा धक्का लगते ही निकल जाते हैं वैसे ही जिस संहनन में मात्र हड्डियाँ छिद्र होने से जुड़ी हो-थोड़े से धक्के से जिसकी हड्डियां टूट जावे उसे छेदवृत्त संहनन कहते हैं। जिस कर्म के उदय से ऐसे संहनन की प्राप्ति होवे, वह सेवार्त्त संहनन नाम कर्म कहलाता है। यह संहनन सभी असन्त्री जीवों (एकेन्द्रिय से असन्नी पंचेन्द्रिय) के होता है। संहनन के इन छह भेदों के अनुसार संहनन नाम कर्म के छह भेद कहे गये हैं। संठाणणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! छविहे पण्णत्ते। तंजहा - समचउरंससंठाणणामे, णिग्गोहपरिमंडलसंठाणणामे, साइसंठाणणामे, वामणसंठाणणामे, खुजसंठाणणामे, हुंडसंठाणणामे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! संस्थान नाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! संस्थान नाम कर्म छह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. समचतुरस्र संस्थान नाम २. न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान नाम ३. सादि संस्थान नाम ४. वामन संस्थान नाम ५. कुब्ज संस्थान नाम और ६. हुण्डक संस्थान नाम। • विवेचन - नाम कर्म के उदय से बनने वाली शरीर की आकृति को संस्थान कहते हैं। इसके छह भेद इस प्रकार हैं - . १. समचतुरस्त्र संस्थान - सम का अर्थ है समान, चतुः का अर्थ है चार और अस्र का अर्थ है कोण। पालथी मार कर बैठने पर जिस शरीर के चारों कोण समान हो अर्थात् आसन और कपाल का अन्तर, दोनों जानुओं (घुटनों) का अन्तर, बाएं कन्धे और दाहिने जानु (घुटने) का अन्तर तथा दाहिने कन्धे और बाएं जानु (घुटने) का अन्तर समान हो, उसे समचतुरस्र संस्थान कहते हैं। छहों संस्थानों में यह संस्थान सर्वश्रेष्ठ है। समचतुरस्र का दूसरा अर्थ - शरीर शास्त्र में जो सर्व सुन्दर शरीर आकार बताया गया है। जो सर्व अङ्गोपाङ्गों से युक्त होता है उसे 'समचतुरस्र संस्थान' कहते हैं। २. न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान - वट वृक्ष को न्यग्रोध कहते हैं। उसका ऊपरी भाग जैसा अति विस्तार युक्त सुशोभित होता है वैसा नीचे का भाग नहीं होता है। उसी तरह नाभि के ऊपर का भाग विस्तृत हो और नाभि से नीचे का भाग वैसा न हो उसे न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान कहते हैं। ३. सादि संस्थान - जिस संस्थान में नाभि के नीचे का भाग पूर्ण हो और ऊपरी भाग हीन हो उसे सादि संस्थान कहते हैं। अथवा साची नाम का एक वृक्ष होता है उसके समान या साप की बांबी के समान जो संहनन होता है उसे सादि संस्थान कहते हैं। ४. वामन संस्थान - जिस शरीर में छाती, पीठ, पेट आदि अवयव पूर्ण हों परन्तु हाथ पैर आदि अवयव छोटे हों, उसे वामन संस्थान कहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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