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प्रज्ञापना सूत्र
तैजस बन्धन - पहले के तैजस पुद्गलों के साथ नवीन गृहीत तैजस पुद्गलों का बन्ध कराने वाला बन्ध। इसी प्रकार कार्मण बन्धन भी समझना चाहिए।
संघयणणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते?
गोयमा! छविहे पण्णत्ते। तंजहा - वइरोसभणारायसंघयणणामे, उसभणारायसंघयणणामे, णारायसंघयणणामे, अद्धणारायसंघयणणामे कीलियासंघयणणामे, छेवट्टसंघयणणामे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! संहनन नाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! संहनन नाम कर्म छह प्रकार का कहा है। वह इस प्रकार है – १. वज्रऋषभनाराच संहनन नाम २. ऋषभनाराच संहनन नाम ३. नाराच संहनन नाम ४. अर्द्धनाराच संहनन नाम ५. कीलिका संहनन नाम और ६. सेवार्त्त संहनन नाम। .. विवेचन - हड्डियों की रचना विशेष संहनन कहलाती है। संहनन औदारिक शरीर में ही हो सकता है, अन्य शरीरों में नहीं क्योंकि अन्य शरीर हड्डियों वाले नहीं होते। अत: जिस कर्म के उदय से शरीर में हड्डियों की रचना आदि होती है उसे संहनन नाम कर्म कहते हैं। संहनन के छह भेद इस प्रकार हैं -
१. वऋषभनाराच संहनन - वज्र का अर्थ कील है, ऋषभ का अर्थ वेष्टनपट्ट (पट्टी) है और नाराच का अर्थ दोनों तरफ से मर्कट बन्ध है। जिस संहनन में दोनों ओर से मर्कट बन्ध द्वारा जुड़ी हुई दो हड्डियों पर तीसरी पट्टी की आकृति वाली हड्डी का चारों तरफ से वेष्टन हो और इन तीनों हड्डियों को भेदने वाली वज्र नामक हड्डी की कील हो उसे वज्रऋषभनाराच संहनन कहते हैं। मोक्ष जाने वाले जीवों के यही संहनन होता है।
२. ऋषभनाराच संहनन - हड्डियों की सन्धि में दोनों ओर से मर्कट बन्ध और उन पर लपेटा हुआ पट्टा हो लेकिन कील न हो, उसे ऋषभनाराच संहनन कहते हैं।
३. नाराच संहनन - दोनों तरफ सिर्फ मर्कट बन्ध हो उसे नाराच संहनन कहते हैं।
४. अर्द्ध नाराच संहनन - एक तरफ मर्कट बन्ध हो और दूसरी तरफ कील हो उसे अर्द्ध नाराच संहनन कहते हैं।
५. कीलिका संहनन - मर्कट बन्ध न हो कर सिर्फ कीलों से ही हड्डियाँ जुड़ी हुई हों, उसे कीलिका संहनन कहते हैं।
६. छेवट्ट (सेवार्त) संहनन - कील न होकर सिर्फ हड्डियों परस्पर में जुड़ी हुई हों उसे छेवट्ट (सेवार्त) संहनन कहते हैं।
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