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प्रज्ञापना सूत्र ###HKHHHHHHHHHHH
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.. ५. कुब्ज संस्थान - जिस शरीर में हाथ पैर सिर गर्दन आदि अवयव ठीक हों परन्तु छाती, पीठ, पेट आदि अवयव टेढे हों, उसे कुब्ज संस्थान कहते हैं।
६. हुण्डक संस्थान - जिस शरीर के समस्त अवयव बेढब हों उसे हुण्डक संस्थान कहते हैं। संस्थान के उपरोक्त छह भेदों से संस्थान नाम कर्म छह प्रकार का कहा गया है। वण्णणामे णं भंते! कम्मे कडविहे पण्णते? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा - कालवण्णणामे जाव सुक्किल्लवण्णणामे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वर्ण नाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! वर्ण नाम कर्म पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - काल वर्ण नाम यावत् शुक्ल वर्ण नाम।
विवेचन - जो वर्णों का जनक है वह वर्ण नाम कर्म है। अथवा जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर काला गोरा आदि वर्ण वाला हो उसे वर्ण नाम कर्म कहते हैं। सफेद, लाल, पीला, नीला और काला ये पांच वर्ण (रंग) माने गये हैं। इन्हीं पांचों के संयोग (मिश्रण) से दूसरे रंग तैयार होते हैं। इनमें से सफेद, लाल, और पीला ये तीन वर्ण शुभ हैं और नीला और काला ये दो वर्ण अशुभ हैं।
॥ पण गंधणामे णं भंते! कम्मे पुच्छा? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - सुरभिगंधणामे, दुरभिगंधणामे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! गन्ध नाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! गन्ध नाम कर्म दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - सुरभिगन्ध नाम और दुरभिगन्ध नाम।
विवेचन - गन्ध्यते-आघ्रायते - जो सूंघा जाता है वह गन्ध है। गन्ध दो हैं- सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध। इसलिये गन्ध नाम कर्म भी दो प्रकार का है-सुरभिगंध नाम कर्म और दुरभिगन्ध नाम कर्म। जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में कमल के फूल और मालती के फूल आदि की तरह शुभ गन्ध हो उसे सुरभिगंध नाम कर्म कहते हैं। जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में ल्हसुन आदि की तरह दुर्गन्ध हो उसे दुरभिगंध नाम कर्म कहते हैं।
रसणामे णं पुच्छा? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा - तित्तरसणामे जाव महुररसणामे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! रस नाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! रस नाम कर्म पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - तिक्त रस नाम यावत् मधुर रस नाम।
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