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________________ तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक - कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ । ७७ उत्तर - हे गौतम! आयु कर्म चार प्रकार का कहा गया है ? वह इस प्रकार है - नरकायु यावत् देवायु। विवेचन - जिस कर्म के रहते प्राणी जीता है और पूरा होने पर मर जाता है उसे आयु कर्म कहते हैं। अथवा-जिस कर्म से जीव एक गति से दूरी गति में जाता है वह आयु कर्म कहलाता है। अथवा-जो कर्म प्रति समय भोगा जाय वह आयु'कर्म है अथवा जिसके उदय आने पर भव विशेष में भोगने लायक सभी कर्म अपना फल देने लगते हैं वह आयु कर्म है। यह कर्म कारागार के समान है। जिस प्रकार राजा की आज्ञा से जेलखाने में डाला हुआ पुरुष वहाँ से निकलना चाहते हुए भी नियत अवधि के पहले वहाँ से नहीं निकल सकता, उसी प्रकार आयुकर्म के कारण जीव नियत समय तक अपने शरीर में बंधा रहता है। अवधि पूरी होने पर वह उसको छोड़ता है परन्तु उसके पहले नहीं। आयु कर्म के चार भेद हैं - १. नरक आयु २. तिर्यंच आयु ३. मनुष्य आयु और ४. देव आयु। णामे णं भंते! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! बायालीसइविहे पण्णत्ते। तंजहा - गइणामे १, जाइणामे २, सरीरणामे ३, सरीरोवंगणामे ४, सरीरबंधणणामे ५, सरीरसंघायणामे ६, संघयणणामे ७, संठाणणामे ८, वण्णणामे ९, गंधणामे १०, रसणामे ११, फासणामे १२, अगुरुलहुयणामे १३, उवघायणामे १४, पराघायणामे १५, आणुपुव्विणामे १६, उस्सासणामे १७, आयवणामे १८, उज्जोयणामे १९, विहायगइणामे २०, तसणामे २१, थावरणामे २२, सुहुमणामे २३, बायरणामे २४, पजत्तणामे २५, अपजत्तणामे २६, साहारणसरीरणामे २७, पत्तेयसरीरणामे २८, थिरणामे २९, अथिरणामे ३०, सुभणामे ३१, असुभणामे ३२, सुभगणामे ३३, दुभगणामे ३४, सूसरणामे ३५, दूसरणामे ३६, आदेजणामे ३७, अणादेजणामे ३८, जसोकित्तिणामे ३९, अजसोकित्तिणामे ४०, णिम्माणणामे ४१, तित्थगरणामे ४२। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? · उत्तर - हे गौतम ! नामकर्म बयालीस प्रकार का कहा है। वे इस प्रकार हैं - १. गति नाम २. जाति नाम ३. शरीर नाम ४. शरीरांगोपांग नाम ५. शरीर बन्धन नाम ६. शरीर संघात नाम ७. संहनन नाम ८. संस्थान नाम ९. वर्ण नाम १०. गन्ध नाम ११. रस नाम १२. स्पर्श नाम १३. अगुरुलघु नाम १४. उपघात नाम १५. पराघात नाम १६. आनुपूर्वी नाम १७. उच्छ्वास नाम १८. आतप नाम १९. उद्योत नाम २०. विहायोगति नाम २१. त्रस नाम २२. स्थावर नाम २३. सूक्ष्म नाम २४. बादर नाम २५. पर्याप्त नाम २६. अपर्याप्त नाम २७. साधारण शरीर नाम २८. प्रत्येक शरीर नाम २९. स्थिर नाम ३०. अस्थिर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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