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प्रज्ञापना सूत्र
नाम ३१. शुभ नाम ३२. अशुभ नाम ३३. सुभग नाम ३४. दुर्भग नाम ३५. सुस्वर नाम ३६. दुःस्वर नाम ३७. आदेय नाम ३८. अनादेय नाम ३९. यश:कीर्ति नाम ४०. अयश:कीर्ति नाम ४१. निर्माण नाम और ४२. तीर्थकर नाम।
विवेचन - जिस कर्म के उदय से जीव नरक, तिर्यंच आदि नामों से पुकारा जाता है उसे नाम कर्म कहते हैं। नाम कर्म चित्रकार के समान है। जैसे चित्रकार विविध वर्गों से अनेक प्रकार के सुन्दर असुन्दर रूप बनाता है उसी प्रकार नाम कर्म जीव के सुन्दर असुंदर आदि अनेक रूप करता है। नाम कर्म के अपेक्षा भेद से ४२, ६७, ९३ अथवा १०३ भेद होते हैं। प्रस्तुत सूत्र में ४२ भेद कहे गये हैं। उसका क्रमशः विवेचन इस प्रकार है
गइणामे णं भंते! कम्मे कइविहे पण्णत्ते?
गोयमा! चउविहे पण्णत्ते। तंजहा-णिरयगइणामे, तिरियगइणामे, मणुयगइणामे, देवगइणामे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! गतिनाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! गतिनाम कर्म चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - नरकगति नाम, २. तिथंच गति नाम ३. मनुष्य गति नाम और ४. देवगति नाम।
विवेचन - जिस कर्म के उदय से जीव नरक आदि गतियों में जाए अथवा नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य या देव की पर्याय प्राप्त करे उसे गति नाम कर्म कहते हैं। चार गतियों के भेद से गतिनाम कर्म चार प्रकार का कहा गया है - १. जिस कर्म के उदय से जीव को नरक गति मिले वह नरक गति नाम है २. जिस कर्म के उदय से जीव को तिर्यंच गति मिले उसे तिर्यंच गतिनाम कहते हैं। ३. जिस कर्म के उदय से जीव को मनुष्य गति मिले उसे मनुष्य गति नाम कर्म कहते हैं और ४. जिस कर्म के उदय से जीव को देव गति मिले वह देवगति नाम कर्म है।
जाइणामे णं भंते! कम्मे पुच्छा? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा - एगिदियजाइणामे.जाव पंचिंदियजाइणामे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जातिनाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! जाति नाम कर्म पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - एकेन्द्रिय जाति नाम, यावत् पंचेन्द्रिय जाति नाम।
विवेचन - जिस कर्म के उदय से जीव को एकेन्द्रिय आदि पर्याय प्राप्त हो, उसे जाति नाम कर्म कहते हैं। इसके पांच भेद इस प्रकार हैं -
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