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________________ ७६ 种 प्रज्ञापना सूत्र 种样本中FEMMENTENNHK林林林平和林林林书本PEAN णोकसायवेयणिजे णं भंते! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! णवविहे पण्णत्ते। तंजहा-इत्थीवेयवेयणिजे, पुरिसवेयणिजे, णपुंसगवेयणिजे, हासे, रई, अरई, भए, सोगे, दुगुंछा॥६१३॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नोकषाय-वेदनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! नोकषाय-वेदनीय कर्म नौ प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. स्त्रीवेद २. परुषवेद ३. नपंसकवेद ४. हास्य ५. रति ६. अरति ७. भय ८. शोक और ९. जगप्सा। विवेचन - नो कषाय-वेदनीय कर्म नौ प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. स्त्रीवेद - जिस कर्म के उदय से स्त्री को पुरुष के साथ रमण करने की (मैथुन सेवन करने की) अभिलाषा होती है उसे 'स्त्री वेद' कहते हैं। २. पुरुषवेद - जिस कर्म के उदय पुरुष को स्त्री के साथ रमण करने की अभिलाषा होती है उसे 'पुरुष वेद' कहते हैं। . ३. नपुंसक वेद - जिस कर्म के उदय से नपुंसक को स्त्री और पुरुष दोनों के साथ रमण करने की अभिलाषा होती है उसे 'नपुंसक वेद' कहते हैं। . ४. हास्य - जिस कर्म के उदय से बिना कारण या कारण वश हंसी आवे, उसे 'हास्य मोहनीय' कहते हैं। ५. रति - जिस कर्म के उदय से अच्छे अच्छे मन पसंद सांसारिक पदार्थों में अनुराग हो उसे 'रति मोहनीय' कहते हैं। ६. अरति - जिस कर्म के उदय से मन नापसंद बुरी चीजों से अरुचि हो उसे 'अरति मोहनीय' कहते हैं। ७. भय - जिस कर्म के उदय से कारण से या बिना कारण से मन में भय पैदा हो, उसे 'भय मोहनीय' कहते हैं। ८. शोक - जिस कर्म के उदय से इष्ट वस्तु का वियोग होने पर मन में शोक पैदा हो उसे 'शोक मोहनीय' कहते हैं। ९. जुगुप्सा - जिस कर्म के उदय से दुर्गन्धि या वीभत्स (घृणा पैदा करने वाले) पदार्थों को देख कर घृणा उत्पन्न हो, उसे 'जुगुप्सा मोहनीय कर्म' कहते हैं। आउए णं भंते! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! चउविहे पण्णत्ते? तंजहा-णेरइयाउए जाव देवाउए॥६१४॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आयुकर्म कितने प्रकार का कहा है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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