SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० प्रज्ञापना सूत्र जीवा णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं कइहिं ठाणेहिं बंधंति ? गोयमा ! दोहिं ठाणेहिं एवं चेव । एवं णेरइया जाव वेमाणिया । एवं दंसणावरणिज्जं जाव अंतराइयं, एवं एए एगत्तपोहत्तिया सोलस दंडगा ॥ ६०० ॥ भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! बहुत जीव कितने स्थानों (कारणों) से ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं ? उत्तर - हे गौतम! बहुत जीव पूर्वोक्त दो कारणों से ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं । इसी प्रकार बहुत से नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक समझना चाहिए। दर्शनावरणीय से लेकर यावत् अन्तरायकर्म तक कर्मबन्ध के ये ही कारण समझने चाहिए। इस प्रकार एकत्व - एकवचन और बहुत्व - बहुवचन की विवक्षा से ये सोलह दण्डक होते हैं तथा उन दो के भी पूर्ववत् चार प्रकार समझने चाहिए। चौथा द्वार वेदन की जाने वाली कर्म प्रकृतियों की गणना जीवे णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं वेएइ ? गोयमा ! अत्थेगइए वेएइ, अत्थेगइए णो वेएइ । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता है ? उत्तर - हे गौतम! कोई जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता है और कोई जीव वेदन नहीं करता है। इणं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं वेएइ ? गोयमा ! णियमा वेएइ । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या नैरयिक ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता है ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिक ज्ञानावरणीय कर्म का नियम से वेदन करता है। एवं जाव वेमाणिए, णवरं मणूसे जहा जीवे । भावार्थ - असुरकुमार से लेकर यावत् वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार जानना चाहिए, किन्तु मनुष्य के विषय में जीव के समान समझना चाहिए। Jain Education International विवेचन - जिस जीव ने घाती कर्मों का क्षय कर दिया है वह ज्ञानावरणीय कर्म नहीं वेदता, शेष सभी जीव ज्ञानावरणीय कर्म वेदते हैं। जीवा णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं वेदेंति ? गोयमा! एवं चैव। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy