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प्रज्ञापना सूत्र
___ द्विक संयोगी भंगों में सप्तविध बंधक और एकविधबन्धक अवस्थित है क्योंकि दोनों सदैव बहुत होते हैं। अतः प्रत्येक अष्टविधबन्धक और षड्विधबंधक में एक वचन रूप प्रथम भंग। अष्टविध बंधक में एक वचन और षड्विधबंधक में बहुवचन रूप दूसरा भंग। ये दो भंग अष्टविध बंधक में एक वचन से होते हैं और ये ही दो भंग बहुवचन से होते हैं इस प्रकार ये चार भंग हुए। इसी प्रकार चार भंग अष्टविधबंधक और अबन्धक के जानना चाहिए। इसी प्रकार चार भंग षड्विध बंधक और अबंधक के जानना चाहिए, ये सभी मिल कर द्विक संयोगी के बारह भंग होते हैं।
अष्टविध बन्धक और अबन्धक रूप तीन पद के संयोग में प्रत्येक के एक वचन और बहुवचन से आठ भंग होते हैं ये सभी मिल कर २७ भंग होते हैं।
शंका - विरति बन्ध का हेतु नहीं है फिर भी विरति वाले के बंध कैसे होता है ? ...
समाधान - विरति बन्ध का हेतु नहीं है किन्तु विरति वाले के जो कषाय और योग हैं वे बंध के . कारण हैं जो इस प्रकार है - सामायिक, छेदोपस्थापनीय और परिहार विशुद्धि चारित्र में भी जो उदय प्राप्त संज्वलन कषाय और शुभ योग हैं उनके कारण विरतिवाले को भी देवायुष्य आदि शुभ प्रकृतियों का बन्ध होता है।
एवं मणूसाण वि एए चेव सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा।
भावार्थ - इसी प्रकार प्राणातिपातविरत मनुष्यों के भी कर्मप्रकृति बन्ध सम्बन्धी ये ही २७ भंग कहने चाहिए।
एवं मुसावायविरयस्स जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स य मणूसस्स य।
भावार्थ - प्राणातिपातविरत एक जीव और एक मनुष्य के समान मृषावाद विरत यावत् मायामृषाविरत एक जीव तथा एक मनुष्य के भी कर्मप्रकृतिबन्ध का कथन करना चाहिए।
विवेचन - जिस प्रकार प्राणातिपात की विरति वाले के २७ भंग कहे गये हैं उसी प्रकार मृषावाद की विरति वाले यावत् माया मृषा की विरति वाले के भी २७ भंग समझना चाहिये।
मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते! जीवे कइ कम्मपगडीओ बंधइ?
गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा अबंधए वा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मिथ्यादर्शनशल्य विरत एक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है ?
उत्तर - हे गौतम! वह सप्तविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, षड्विधबन्धक, एकविधबन्धक अथवा अबन्धक होता है।
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