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________________ बाईसवाँ क्रियापद - पापों से विरत जीवों के कर्म प्रकृति बंध ३७ अबन्धक होता है ४. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक एवं एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक होता है और अनेक षड्विधबन्धक एवं अबन्धक होते हैं ५. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं तथा एक षड्विधबन्धक और अबन्धक होता है ६. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं तथा एक षड्विधबन्धक एवं अनेक अबन्धक होते हैं ७. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं तथा एक अबन्धक होता है ८. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, षडविधबन्धक और अबन्धक होते हैं। ये कल आठ भंग हए। सब मिलाकर कल २७ भंग होते हैं। विवेचन - प्राणातिपात आदि से विरत जीव कितनी कर्म प्रकृतियों का बंध करता है? इसके उत्तर में कहा है - १. सभी जीव सात प्रकृति के बांधने वाले और एक प्रकृति के बांधने वाले होते हैं। प्रमत्त अप्रमत्त अपूर्वकरण और अनिवृति बादर संपराय सात प्रकृतियाँ बांधते हैं उनमें प्रमत्त और अप्रमत्त आयुष्य के बंध के समय आठ प्रकृतियाँ बांधते हैं क्योंकि वें आयुष्य का भी बंध करते हैं और आयुष्य का बंध कदाचित् होता है इसलिए किसी समय सर्वथा भी नहीं होते अतः प्रमत्त और अप्रमत्त सदैव बहुत होते हैं। अपूर्वकरण और अनिवृत्तिबादर कदाचित् नहीं भी होते हैं क्योंकि आगम में उनका विरह भी कहा गया है। एक प्रकृति बांधने वाले उपशांत मोह, क्षीण मोह और सयोगी केवली हैं उनमें उपशान्तमोह और क्षीण मोह कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता है क्योंकि उनका भी अन्तर संभव है। सयोगी केवली हमेशा होते हैं क्योंकि अन्य-अन्य क्षेत्रों में होने के कारण उनका विच्छेद नहीं होता है। इसलिए सात प्रकृतियों के बंधक और एक प्रकृति के बंधक बहुत अवस्थित (विद्यमान) होते हैं। इस प्रकार आठ प्रकृतियों के बंध करने वाले आदि के अभाव में प्रथम भंग होता है। अथवा २. सात प्रकृति के बांधने वाले और एक प्रकृति के बांधने वाले बहुत होते हैं और एक आठ प्रकृतियों को बांधने वाला होता है यह दूसरा भंग। ३. आठ प्रकृतियों को बांधने वाले बहुत, यह तीसरा भंग। ४. छह प्रकृतियों के बांधने वाले भी कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते क्योंकि उनके उत्कृष्ट छह मास का विरह होता है। जब वे होते हैं तब जघन्य एक या दो उत्कृष्ट १०८ होते हैं इसलिये जब आठ प्रकृतियों के बांधने वाले नहीं होते हैं तब छह प्रकृतियों के बांधने वालों के भी दो भंग होते हैं। अबन्धक अयोगी केवली होते हैं और वे भी कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। क्योंकि उनका भी उत्कृष्ट छह मास का विरह होता है जब वे होते हैं तब जघन्य एक यावत् उत्कृष्ट एक सौ आठ होते हैं इसलिए आठ प्रकृतियों के बांधने वाले नहीं होते हैं तब अबंधक के भी दो भंग होते हैं। इस प्रकार एक पहला भंग और एक-एक के संयोग से छह दूसरे भंग इस प्रकार सभी मिल कर सात भंग होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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