SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाईसवाँ क्रियापद - आयोजिका क्रियाएं २३ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जिस देश में जीव कायिकी क्रिया होती है, क्या उस देश में आधिकरणिकी क्रिया होती है? उत्तर - हे गौतम! यहाँ भी पूर्वोक्त सूत्रों की तरह यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जिप प्रदेश में जीव के कायिकी क्रिया होती है, क्या उस प्रदेश में आधिकरणिकी क्रिया होती है ? उत्तर - हे गौतम! यहाँ भी पूर्वोक्त सूत्रों की तरह यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। इस प्रकार- १. जिस जीव के २. जिस समय में ३. जिस देश में और ४. जिस प्रदेश में ये चार दण्डक होते हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पांच क्रियाओं के जीव, समय, देश और प्रदेश की अपेक्षा परस्पर सहभाव (संबंध) का निरूपण किया गया है। यहाँ 'समय' शब्द से सामान्य काल का ग्रहण समझना चाहिए किन्तु काल के सूक्ष्मतम अंश रूप समय नहीं समझना। 'देश' शब्द से बड़ा क्षेत्र समझना किन्तु 'प्रदेश' शब्द से उसी का छोटा क्षेत्र समझना चाहिए। आयोजिका क्रियाएं कइ णं भंते! आओजियाओ किरियाओ पण्णत्ताओ? गोयमा! पंच आओजियाओ किरियाओ पण्णत्ताओ। तंजहा - काइया जाव पाणाइवाय किरिया। कठिनशब्दार्थ-आओजियाओ-आयोजिका-जीवको संसार में आयोजित करने (जोड़ने वाली)। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आयोजिका क्रियाएं कितनी कही गई हैं ? उत्तर - हे गौतम! आयोजिका क्रियाएं पांच कही गई हैं, वह इस प्रकार है-कायिकी यावत् प्राणातिपात क्रिया। विवेचन - सभी क्रियाएं आयोजिका होते हुए भी इनको ही आयोजिका क्रियाएं कही गई हैं। क्योंकि बहुत से मतान्तरों का खण्डन करने के लिए बहुत से दर्शन दृष्टि परिवर्तन होते ही वे ही क्रियाएं संसार को तोड़ने वाली हो जाती है। किन्तु यहाँ ऐसा नहीं है ये तो आयोजिका ही होती है। एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। भावार्थ - नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक इन पांचों आयोजिका क्रियाओं का इसी प्रकार कथन करना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy