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प्रज्ञापना सूत्र
की तीन क्रियाएँ अवश्य होती है। क्योंकि पूर्व की तीन क्रियाओं के अभाव में परिताप और प्राणातिपात क्रिया संभव नहीं है ।
जस्स णं भंते! णेरइयस्स काइया किरिया कज्जइ तस्स अहिगरणिया किरिया कज्जइ ?
गोयमा ! जहेव जीवस्स तहेव णेरइयस्स वि ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जिस नैरयिक के कायिकी क्रिया होती है क्या उसके आधिकरणिकी क्रिया होती है ?
उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार जीव सामान्य (समुच्चय जीव) में कायिकी आदि क्रियाओं के परस्पर सहभाव की चर्चा की गई है उसी प्रकार नैरयिक के सम्बन्ध में भी समझ लेनी चाहिए । एवं णिरंतरं जाव वेमाणियस्स ॥ ५८८ ॥
भावार्थ - इसी प्रकार नैरयिक के समान वैमानिक तक क्रियाओं के परस्पर सहभाव का कथन करना चाहिए।
जं समयं णं भंते! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ तं समयं अहिगरणिया किरिया कज्जइ, जं समयं अहिगरणिया किरिया कज्जइ तं समयं काइया किरिया कज्जइ ?
एवं जहेव आइल्लाओ दंडओ तहेव भाणियव्वो जाव वेमाणियस्स ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जिस समय जीव के कायिकी क्रिया होती है, क्या उस समय उसके आधिकरणिकी क्रिया होती है ? तथा जिस समय उसके आधिकरणिकी क्रिया होती है, क्या उस समय कायिकी क्रिया होती है ?
उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार क्रियाओं के परस्पर सहभाव के सम्बन्ध में प्रारम्भिक दण्डक कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी वैमानिक तक कह देना चाहिए।
जं दे णं भंते! जीवस्स काइया किरिया तं देसं णं अहिगरणिया किरिया तहेव जाव वेमाणियस्स ।
जं पएसं णं भंते! जीवस्स काइया किरिया तं पएसं णं अहिगरणिया किरिया एवं तव जाव वेमाणियस्स । एवं एए जस्स जं समयं जं देसं जं पएसं णं चत्तारि दंडगा होंति ॥ ५८९ ॥
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