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________________ ३३३ #####MMMMMMMHHHHM MMMM琳 छत्तीसवां समुद्घात पद - केवलि समुद्घात की प्रक्रिया जिन केवलियों के आयुष्य कर्म की स्थिति छह महीने से कम शेष हो एवं वेदनीय, नाम, गोत्र इन तीन कर्मों की स्थिति अधिक शेष हो ऐसे केवलज्ञानी ही केवलि समुद्घात करते हैं। छह महीने एवं छह महीने से अधिक आयु शेष हो तथा तीन कर्मों की स्थिति अधिक भी हो वे केवली तथाविध प्रयत्न से चारों कर्मों को साथ में क्षय कर सकते हैं अत: वे केवली समुद्घात नहीं करते हैं। ___सभी केवली केवलि समुद्घात नहीं करते हैं क्योंकि जिनके स्वभाव से ही चारों कर्म समान होते हैं वे एक साथ उनका क्षय करके समुद्घात किये बिना ही सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। आवर्जीकरण का समय कइ समइए णं भंते! आउज्जीकरणे पण्णत्ते? गोयमा! असंखेजसमइए अंतोमुहुत्तिए आउजीकरणे पण्णत्ते। केवलि समुद्घात की प्रक्रिया कइ समइए णं भंते! केवलि समुग्घाए पण्णत्ते? गोयमा! अट्ठ समइए पण्णत्ते। तंजहा - पढमे समए दंडं करेइ, बीए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, चउत्थ समए लोगं पूरेइ, पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छठे समए मंथं पडिसाहरइ, सत्तमए समए कवाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, दंडं पडिसाहरेत्ता तओ पच्छा सरीरत्थे भवइ॥७११॥ कठिन शब्दार्थ - आउज्जीकरणे - आवर्जीकरण, दंडं - दण्ड, कवाडं - कपाट, मंथं - मंथान, पूरेइ - पूरता (व्याप्त करता) है, पडिसाहरइ - संहरण करता है (सिकोड़ता) सरीरत्थे - शरीरस्थ । . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आवर्जीकरण कितने समय का कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! आवर्जीकरण असंख्यात समय के अंतर्मुहूर्त का कहा गया है। प्रश्न - हे भगवन् ! केवलि समुद्घात कितने समय का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! केवलि समुद्घात आठ समय का कहा गया है। वह इस प्रकार है - प्रथम समय में दंड करता है दूसरे समय में कपाट करता है, तीसरे समय में मन्थान करता है, चौथे समय में लोक को पूरता है, पांचवें समय में लोक का संहरण करता है (सिकोड़ता है) छठे समय में मन्थान को सिकोड़ता है, सातवें समय में कपाट को सिकोड़ता है और आठवें समय में दण्ड को सिकोड़ता है और दण्ड को संकुचित करने के बाद शरीरस्थ हो जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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