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________________ ३१० - . प्रज्ञापना सूत्र NNNN#AN#FFEESEHAM MAHAHAHASHEEKEEPISHENHEIRAGM-MGAMIERSPEPPENNINEFENMAKE . गोयमा! सव्वत्थोवा मणुस्सा आहारगसमुग्घाएणं समोहया, केवलि समुग्धाएणं समोहया संखिजगुणा, तेयगसमुग्घाएणं समोहया संखिजगुणा, वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहया संखिजगुणा, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया असंखिजगुणा, वेयणा समुग्घाएणं समोहया असंखिजगुणा, कसायसमुग्घाएणं समोहया संखिजगुणा, असमोहया असंखिज्जगुणा। वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं ॥६९८॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वेदना समुद्घात से, कषाय समुद्घात से, मारणांतिक समुद्घात से, वैक्रिय समुद्घात से, तैजस समुद्घात से, आहारक समुद्घात से तथा केवलि समुद्घात से समवहत और असमवहत मनुष्यों में कौन किनसे अल्प, बहुत्व, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े आहारक समुद्घात से समवहत मनुष्य हैं। उनसे केवलि समुद्घात से समवहत संख्यातगुणा, उनसे तैजस समुद्घात से समवहत संख्यात गुणा, उनसे वैक्रिय समुद्घात से समवहत संख्यातगुणा, उनसे मारणांतिक समुद्घात से समवहत मनुष्य असंख्यातगुणा, उनसे वेदना समुद्घात से समवहत असंख्यातगुणा और उनसे कषाय समुद्घात से समवहत मनुष्य संख्यातगुणा हैं और उनसे भी असमवहत मनुष्य असंख्यातगुणा हैं। ___ वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिकों की समुद्घात विषयक अल्पबहुत्व असुरकुमारों के समान समझ लेनी चाहिये। विवेचन - प्रस्तूत सूत्र में मनुष्य में पाये जाने वाले समुद्घात विषयक अल्पबहुत्व का कथन किया गया है। जो इस प्रकार है - ___ सबसे थोड़े आहारक समुद्घात वाले मनुष्य हैं क्योंकि सबसे थोड़े मनुष्यों को एक काल में आहारक शरीर का प्रारम्भ संभव है। उनसे केवलि समुद्घात वाले मनुष्य संख्यात गुणा हैं क्योंकि वे शत पृथक्त्व-दो सौ से छह सौ झाझेरी तक की संख्या में पाये जाते हैं। उनसे तैजस समुद्घात वाले संख्यातगुणा हैं क्योंकि वे संख्या में लाखों प्रमाण पाये जाते हैं। उनसे वैक्रिय समुद्घात वाले संख्यात गुणा हैं क्योंकि वे करोड़ों प्रमाण होते हैं। उनसे मारणांतिक समुद्धात वाले असंख्यातगुणा हैं क्योंकि सम्मूछिम मनुष्यों को भी मरण समुद्घात संभव हैं और वे असंख्याता हैं। उनमें भी वेदना समुद्घात वाले मनुष्य असंख्यात गुणा हैं क्योंकि मरण पाते हुए जीवों की अपेक्षा मरण नहीं पाने वाले असंख्यातगुणा जीवों को वेदना समुद्घात संभव है। उनसे भी कषाय समुद्घात वाले मनुष्य संख्यात गुणा हैं क्योंकि वे बहुत हैं। उनसे भी समुद्घात रहित मनुष्य असंख्यातगुणा हैं क्योंकि उत्कृष्ट कषाय करने वालों की अपेक्षा असंख्यातगुणा अल्पकषाय वाले सम्मूछिम मनुष्य सदैव पाये जाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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