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________________ छत्तीसवां समुद्घात पद - समवहत एवं असमवहत जीवों के अल्पबहुत्व ३०९ W W WHHHWEH-EPHENWEEKEEPEATHWEEEEPHHHHHHHH-PIPE भी समुद्घात रहित बेइन्द्रिय जीव संख्यातगुणा हैं। जिस प्रकार बेइन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व कहा है उसी प्रकार तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व भी समझ लेना चाहिये। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! वेयणा समुग्घाएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतिय समुग्घाएणं वेउव्वियसमुग्घाएणं तेयासमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? ___ गोयमा! सव्वत्थोवा पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया तेयासमुग्घाएणं समोहया वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहया असंखिजगुणा, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया असंखिजगुणा, वेयणा समुग्घाएणं समोहया असंखिज्जगुणा कसायसमुग्घाएणं समोहया संखिज्जगुणा, असमोहया संखिजगुणा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वेदना समुद्घात से, कषाय समुद्घात से, मारणांतिक समुद्घात से, वैक्रिय समुद्घात से, तैजस समुद्घात से समवहत एवं असमवहत पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में कौन किनसे अल्प, बहुत्व, तुल्य या विशेषाधिक होते हैं? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े तैजस समुद्घात से समवहत पंचेन्द्रिय तिर्यंच हैं उनसे वैक्रिय । समुद्घात से समवहत असंख्यातगुणा हैं, उनसे मारणांतिक समुद्घात से समवहत असंख्यातगुणा हैं उनसे वेदना समुद्घात से समवहत असंख्यातगुणा हैं, उनसे कषाय समुद्घात से समवहत संख्यातगुणा हैं और उनसे भी असमवहत पंचेन्द्रिय तिर्यंच संख्यात गुणा हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में समुद्घात की अपेक्षा अल्पबहुत्व का कथन किया गया है, जो इस प्रकार है - सबसे थोड़े तैजस समुद्घात वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच है क्योंकि बहुत थोड़ों में तेजोलब्धि होती है। उनसे वैक्रिय समुद्घात वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय असंख्यातगुणा हैं क्योंकि बहुत से जीवों को वैक्रिय लब्धि होती है। उनसे मारणांतिक समुद्घात वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वैक्रिय लब्धि से रहित सम्मूछिम जलचर, स्थलचर और खेचर भी तथा कितनेक वैक्रिय लब्धि रहित और वैक्रिय लब्धि वाले गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियों में भी मरण समुद्घात संभव है। उनसे वेदना समुद्घात वाले असंख्यातगुणा हैं क्योंकि मरने वाले जीवों की अपेक्षा भी नहीं मरने वाले असंख्यातगुणा तिर्यंचों में भी वेदना समुद्घात संभव है। उनसे कषाय समुद्घात वाले संख्यातगुणा हैं। उनसे भी समुद्घात रहित तिर्यंच पंचेन्द्रिय संख्यात गुणा हैं। मणुस्साणं भंते! वेयणासमुग्धाएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतियसमुग्धाएणं वेउब्वियसमुग्घाएणं तेयगसमुग्धाएणं आहारगसमुग्धाएणं केवलिसमुग्धाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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