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प्रज्ञापना सूत्र
२९२ Halfatekstartelaletaketattelaletatakdatestate:attraEEEEEEEEEERelateEEEEEEEElectatestEEEEEEEEEkeletatataletstakakalatalatkirtamatetikteletElaletstatute
पृथ्वीकायत्व में एक से लेकर जानना चाहिये। इसी प्रकार यावत् मनुष्य पर्याय में समझना चाहिये। वाणव्यंतरत्व में नैरयिक के असुरकुमारत्व के समान समझना। ज्योतिषी पर्याय में अतीत कषाय समुद्घात अनंत हैं तथा अनागत कषाय समुद्घात किसी के होता है किसी के नहीं होता। जिसके होता है उसके कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनंत होते हैं। इसी प्रकार वैमानिकत्व में भी कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनंत अनागत कषाय समुद्घात होते हैं। ..
विवेचन - एक-एक नैरयिक के असुरकुमार पर्याय में भूतकाल में अनन्त कषाय समुद्घात हुए हैं। भविष्य में जो नैरयिक असुरकुमार में उत्पन्न होगा उसके कषाय समुद्घात होंगे और जो नरक से निकल कर असुरकुमार पर्याय में उत्पन्न नहीं होगा उसके कषाय समुद्घात नहीं होंगे। जिसके अनागत कषाय समुद्घात होते हैं उसके कदाचित् संख्यात, असंख्यात या अनंत होते हैं। जो नैरयिक भविष्य में जघन्य स्थिति वाला असुरकुमार होगा उसके संख्यात कषाय समुद्घात होते हैं क्योंकि जघन्य स्थिति में भी असुरकुमारों के संख्यात कषाय समुद्घात होते हैं इसका कारण यह है कि वह लोभ आदि बहु कषाय वाला होता है। जो नैरयिक एक बार दीर्घ स्थिति वाले या अनेक बार जघन्य स्थिति वाले असुरकुमार में उत्पन्न होगा उसके असंख्यात कषाय समुद्घात होंगे और जो नैरयिक भविष्य में अनंत बार असुरकुमार पर्याय में उत्पन्न होगा उसे अनन्त अनागत कषाय समुद्घात होंगे।
जिस प्रकार नैरयिक के असुरकुमार पर्याय में अनागत कषाय समुद्घात कहे हैं उसी प्रकार नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक में भी कहने चाहिये।
नैरयिक के पृथ्वीकाय पर्याय में भूतकाल की अपेक्षा अनंत कषाय समुद्घात हुए हैं और भविष्य काल की अपेक्षा किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते हैं। जिसके होते हैं उसके पूर्ववत् एक से लगा कर हैं अर्थात् जघन्य एक, दो या तीन हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं जो इस प्रकार है - तिर्यंच पंचेन्द्रिय भव से, मनुष्य के भव से या देव के भव से कषाय समुद्घात को प्राप्त होकर जो एक बार पृथ्वीकायिक में जाने वाला है उसके एक, दो बार जाने वाले के दो, तीन बार जाने वाले के तीन, संख्यात बार जाने वाले के संख्यात, असंख्यात बार जाने वाले के असंख्यात और अनंत बार जाने वाले के अनन्त कषाय समुद्घात होते हैं। जो नरक से निकल कर पुनः पृथ्वीकायिक में कभी नहीं जाएगा उसके अनागत कषाय समुद्घात नहीं होंगे। जिस प्रकार नैरयिक के पृथ्वीकाय पर्याय में कषाय समुद्घात कहे हैं उसी प्रकार यावत् मनुष्य तक अतीत और अनागत कषाय समुद्घात के विषय में समझ लेना चाहिये।
नैरयिक के असुरकुमार पर्याय में जिस प्रकार अतीत और अनागत कषाय समुद्घात कहे हैं उसी प्रकार वाणव्यंतर पर्याय में भी समझना चाहिये। रैरयिक के ज्योतिषी पर्याय और वैमानिक पर्याय में
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