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________________ छत्तीसवां समुद्घात पद - नैरयिक आदि भावों में वर्तते हुए एक-एक जीव के..... २९१ 林 林 林林林种中中中中 中中中中中中中中中中中中 होते। जिसके होते हैं उसके जघन्य एक, दो या तीन उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं। जिसका शेष आयुष्य क्षीण हो चुका है ऐसा प्रश्न के समय भव के अंत में वर्तता हुआ नैरयिक कषाय समुद्घात किये बिना ही नरक भव से निकल कर अनन्तर मनुष्य भव में या परम्परा से मनुष्य भव प्राप्त कर सिद्ध होगा, पुन: नरक गामी नहीं होगा उसे नैरयिक अवस्था में भविष्य में कषाय समुद्घात नहीं होता। उत्कृष्ट से भावी कषाय समुद्घात संख्यात, असंख्यात या अनंत होते हैं। उनमें भी जिनका संख्यात वर्ष का आयुष्य शेष हैं उनके संख्यात, असंख्यात वर्ष का आयुष्य जिनका बाकी है उनके असंख्यात कषाय समुद्घात होते हैं। अथवा एक बार जघन्य स्थिति वाले नरक में उत्पन्न होने वाले में संख्यात, बारबार जघन्य स्थिति वाले नरक में उत्पन्न होने वाले में एक बार या अनेक बार दीर्घ स्थिति वाले नरक में उत्पन्न होने वाले में असंख्यात और अनन्त बार उत्पन्न होने वाले में भविष्य काल की अपेक्षा अनन्त कषाय समुद्घात समझने चाहिये। एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवइया कसाय समुग्घाया अतीता? गोयमा! अणंता। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि सिय संखेजा सिय असंखेजा सिय अणंता, एवं जाव णेरइयस्स थणियकुमारत्ते। पुढविकाइयत्ते एगुत्तरियाए णेयव्वं एवं जाव मणुयत्ते, वाणमंतरत्ते जहा असुरकुमारत्ते। जोइसियत्ते अतीता अणंता, परेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि जस्सऽत्थि सिय असंखेज्जा सिय अणंता, एवं वेमाणियत्ते वि सिय असंखेजा, सिय अणंता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एक एक नैरयिक के असुरकुमारत्व (असुरकुमार पर्याय) में कितने कषाय समुद्घात अतीत हुए हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक-एक नैरयिक के असुरकुमार पर्याय में अतीत कषाय समुद्घात अनन्त प्रश्न - हे भगवन्! एक-एक नैरयिक के असुरकुमार पर्याय में अनागत कषाय समुद्घात कितने होते हैं? . उत्तर - हे गौतम! एक-एक नैरयिक के असुरकुमारत्व में भावी कषाय समुद्घात किसी के होते हैं किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं। इसी प्रकार नैरयिक का यावत् स्तनितकुमार पर्याय में समझना चाहिये। नैरयिक का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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