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पैतीसवां वेदना पद - द्रव्यादि वेदना द्वार
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असुरकुमाराणं पुच्छा ?
गोयमा ! सीयं पिवेयणं वेदेंति, उसिणं पि वेयणं वेदेंति, सीओसिणं पि वयणं वेदेंति, एवं जाव वेमाणिया ॥ ६८२ ॥
भावार्थ- प्रश्न असुरकुमारों के विषय में पूर्ववत् पृच्छा ?
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२६७
उत्तर
शीतोष्ण वेदना भी वेदते हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक समझना चाहिये ।
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हे गौतम! असुरकुमार आदि शीत वेदना भी वेदते हैं, उष्ण वेदना भी वदत हैं और
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विवेचन - नैरयिकों को छोड़ कर शेष तेइस दण्डकों के जीव तीनों वेदना-शीत वेदना, उष्ण वेदना और शीतोष्ण वेदना - वेदते हैं।
२. द्रव्यादि वेदना द्वार
कइविहाणं भंते! वेयणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! चव्विहा वेयणा पण्णत्ता । तंजहा- दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ । भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ?
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उत्तर - हे गौतम! वेदना चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है ३. काल से और ४. भाव से ।
विवेचन - वेदना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव रूप सामग्री के निमित्त से उत्पन्न होती है क्योंकि सभी वस्तुएं द्रव्यादि सामग्री के वश से उत्पन्न होती है। जब प्राणी की वेदना पुद्गल द्रव्य के संयोग से होती है तो वह द्रव्य वेदना कहलाती है २. नैरयिक आदि को उपपात क्षेत्र आदि की अपेक्षा होने वाली वेदना क्षेत्र वेदना कहलाती है ३. नैरयिक आदि भव की काल के संबंध से विवक्षा की जाती है तो काल वेदना अथवा ऋतु दिन रात आदि के संयोग से होने वाली वेदना काल वेदना कहलाती है और ४. वेदनीय कर्म के उदय रूप प्रधान कारण से उत्पन्न होने वाली वेदना भाव वेदना कहलाती है। णेरड्या णं भंते! किं दव्वओ वेयणं वेदेंति जाव भावओ वेयणं वेदेति ?
गोयमा ! दव्वओ वि वेयणं वेदेंति जाव भावओ वि वेयणं वेदेंति, एवं जाव वेमाणिया ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिक क्या द्रव्य से वेदना वेदते हैं यावत् भाव से वेदना वेदते हैं ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिक द्रव्य से भी वेदना वेदते हैं यावत् भाव से भी वेदना वेदते हैं इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक कहना चाहिये ।
विवेचन नैरयिक आदि चौबीस ही दण्डक के जीव चारों वेदना (द्रव्य वेदना, क्षेत्र वेदना, काल वेदना और भाव वेदना) वेदते हैं।
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१. द्रव्य से २. क्षेत्र से
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