SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ * प्रज्ञापना सूत्र H HMENE## WW # ### # # # ###林水 प्रश्न - हे भगवन् ! अनुत्तरौपातिक देवों के अवधिज्ञान का आकार कैसा कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! अनुत्तरौपपातिक देवों का अवधिज्ञान यवनालिका के आकार का कहा गया है। विवेचन - बारह देवलोक के देवों के अवधिज्ञान का संस्थान खड़ी मृदंग के आकार का होता है। नवग्रैवेयक देवों के अवधिज्ञान का संस्थान (गूंथे हुए फूलों के शिखर वाला) फूलों की चंगेरी जैसा तथा अनुत्तर विमान के देवों के अवधिज्ञान का संस्थान यवनालिका (कन्या की चोली-कंचुक) जैसा होता है। नारक आदि दण्डकों में अवधि क्षेत्र का आकार (संस्थान) 'वृहत् संग्रहणी' आदि ग्रन्थों में पाया जाता है। जिज्ञासुओं को उन उन ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिये। ४-५ आभ्यंतर बाह्य द्वार णेरंइया णं भंते! ओहिस्स वि अंतो, बाहिं? गोयमा! अंतो, णो बाहिं। एवं जाव थणियकुमारा। पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! णो अंतो, बाहिं। मणूसाणं पुच्छा। गोयमा! अंतो वि बाहिं वि। वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं॥६७१॥ . कठिन शब्दार्थ - अंतो - आभ्यंतर (अंदर), बाहिं - बाह्य। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिक अवधिज्ञान के अंत:-अंदर-मध्यवर्ती मध्य में रहने वाले होते हैं या बाह्य-बाहर होते हैं? उत्तर - हे गौतम! नैरयिक अवधिज्ञान के अंत:-अंदर होते हैं, बाह्य नहीं होते। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक समझना चाहिये। प्रश्न - हे भगवन्! पंचेन्द्रिय तिर्यंच के विषय में पृच्छा? उत्तर - हे गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यंच अवधिज्ञान के अंत:-अंदर नहीं होते, बाह्य होते हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्य अवधिज्ञान के अंतः होते हैं या बाह्य होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! मनुष्य अवधिज्ञान के अन्दर भी होते हैं और बाहर भी होते हैं। वाणव्यंतर ज्योतिषी और वैमानिक देवों की वक्तव्यता नैरयिकों के समान समझनी चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy