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________________ उनतीसवां उपयोग पद . २११ प्रश्न - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों का साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों का साकारोपयोग दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार हैं - मति अज्ञान साकारोपयोग और श्रुत अज्ञान साकारोपयोग। प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों का अनाकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों का अनाकारोपयोग एक प्रकार का कहा गया है और वह है-अचक्षुदर्शन अनाकारोपयोग। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक समझना चाहिये। विवेचन - पृथ्वीकायिकों का साकार उपयोग दो प्रकार का है - मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान। अनाकार उपयोग एक अचक्षुदर्शन रूप है। शेष उपयोग उनमें नहीं होते क्योंकि उनको सम्यग्-दर्शन आदि लब्धि प्राप्त नहीं है। इसी प्रकार अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के जीवों के विषय में समझना चाहिए। - बेइंदियाणं पुच्छा? गोयमा! दुविहे उवओगे पण्णत्ते। तंजहा - सागारोवओगे अणागारोवओगे य। . बेइंदियाणं भंते! सागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! चउविहे पण्णत्ते। तंजहा - आभिणिबोहियणाण सुयणाण, मइअण्णाण०, सुयअण्णाणसागारोवओगे। बेइंदियाणं भंते! अणागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते? ... गोयमा! एगे अचक्खुदंसणअणागारोवओगे, एवं तेइंदियाण वि। चउरिदियाण वि एवं चेव, णवरं अणागारोवओगे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - चक्खुदंसणअणागारोवओगे, अचक्खुदंसणअणागारोवओगे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीवों का उपयोग कितने प्रकार का कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय जीवों का उपयोग दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - १. साकारोपयोग और २. अनाकारोपयोग। प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीवों का साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय जीवों का साकारोपयोग चार प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - १. आभिनिबोधिकज्ञान साकारोपयोग २. श्रुतज्ञान साकारोपयोग ३. मति अज्ञान साकारोपयोग और ४. श्रुतअज्ञान साकारोपयोग। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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