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________________ २१० प्रज्ञापना सूत्र ddddddddddccc=**** प्रश्न - हें भगवन् ! नैरयिकों का साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों का साकारोपयोग छह प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है १. मतिज्ञान साकारोपयोग २. श्रुतज्ञान साकारोपयोग ३. अवधिज्ञान साकारोपयोग ४. मति अज्ञान साकारोपयोग ५. श्रुत अज्ञान साकारोपयोग ६. विभंगज्ञान साकारोपयोग । प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों का अनाकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों का अनाकारोपयोग तीन प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है१. चक्षुदर्शन अनाकारोपयोग २. अचक्षुदर्शन अनाकारोपयोग और ३. अवधि दर्शन. अनाकारोपयोग। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक समझना चाहिये । विवेचन - नैरयिक जीव दो प्रकार के होते हैं - १. सम्यग्दृष्टि और २. मिथ्यादृष्टि । नैरयिकों को भवनिमित्तक अवधिज्ञान अवश्य उत्पन्न होता है क्योंकि 'भवप्रत्ययो नारक देवानाम्' (तत्त्वार्थ सूत्र अ० १ सूत्र २२) ऐसा शास्त्रवचन है। अतः सम्यग्दृष्टि नैरयिकों को मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होता है और मिथ्यादृष्टि नैरयिकों को मतिअज्ञान श्रुतअज्ञान और विभंगज्ञान होता है इसलिए सामान्य रूप से नैरयिकों में छह प्रकार का साकारोपयोग होता है। दोनों प्रकार के नैरयिकों में 'सामान्य रूप से तीन प्रकार का अनाकार उपयोग होता है - १. चक्षुदर्शन २. अचक्षुदर्शन और ३. अवधिदर्शन ।' इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों तक साकारोपयोग और अनाकारोपयोग का कथन करना चाहिये । पुढविकाइयाणं पुच्छा ? गोमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते । तंजहा - सागारोवओगे अणागारोवओगे य । पुढविकाइयाणं भंते! सागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - मइअण्णाणसागारोवओगे, सुयअण्णाणसागारोवओगे य । Jain Education International पुढविकाइयाणं भंते! अणागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! एगे अचक्खुदंसणअणागारोवओगे पण्णत्ते, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों का उपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिकों का उपयोग दो प्रकार का कहा गया है। यथा - साकारोपयोग और अनाकारोपयोग | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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