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अट्ठाईसवाँ आहार पद - द्वितीय उद्देशक - ज्ञान द्वार
तिर्यंचों को गुणप्रत्यय अवधिज्ञान होता है किन्तु विग्रहगति में उन गुणों का अभाव होता है इसलिए विग्रहगति में अवधिज्ञान नहीं होता है और अप्रतिपतित अवधिज्ञान सहित देव या मनुष्य तिर्यंचों में उत्पन्न नहीं होते इसलिए अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में अनाहारकपना असंभव है। एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों को अवधिज्ञान नहीं होता अतः पंचेन्द्रिय तिर्यंचों को छोड़कर शेष अवधिज्ञानी जीवों में तीन-तीन भंग कहने चाहिये ।
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मनःपर्यवज्ञान मनुष्यों को ही होता है अतः समुच्चयजीव और मनुष्य में एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा मनः पर्यवज्ञानी आहारक ही होते हैं किन्तु अनाहारक नहीं होते क्योंकि विग्रहगति आदि अवस्था में मनः पर्यवज्ञान संभव नहीं है।
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केवलज्ञानी का कथन नोसंज्ञी नोअसंज्ञी की तरह कहना । तात्पर्य यह है कि केवलज्ञान के विचार में तीन पद होते हैं - समुच्चय (सामान्य) जीव पद, मनुष्य पद और सिद्ध पद । उनमें सामान्य जीव पद और मनुष्य पद में एक वचन की अपेक्षा कदाचित् आहारक होता है कदाचित् अनाहारक होता है कहना सिद्ध पद में अनाहारक होता है। बहुवचन की अपेक्षा सामान्य जीव पद में आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी होते हैं जबकि मनुष्य पद
पूर्वानुसार तीन भंग होते हैं। सिद्ध पद में सभी.
अनाहारक ही होते हैं ।
अण्णाणी मइअण्णाणी सुयअण्णाणी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। विभंगणाणी पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य आहारगा, णो अणाहारगा, अवसेसेसु जीवाइओ तियभंगो ॥ दारं ८-२ ॥ ६५५ ॥
भावार्थ - अज्ञानी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी जीवों में समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। विभंगज्ञानी तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य आहारक ही होते हैं अनाहारक नहीं। शेष जीवों में तीन भंग पाये जाते हैं। द्वार ८॥ ·
विवेचन - समुच्चय अज्ञानी, मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानी में एकवचन की अपेक्षा पूर्ववत् समझना । बहुवचन की अपेक्षा समुच्चय जीव और पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीवों में 'बहुत आहारक होते हैं और बहुत अनाहारक होते हैं' - इस प्रकार कहना शेष स्थानों में तीन भंग होते हैं। विभंगज्ञानी में एकवचन की अपेक्षा उसी प्रकार कहना, बहुवचन में विभंगज्ञानी तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य आहारक ही होते हैं किन्तु अनाहारक नहीं होते क्योंकि विभंगज्ञान सहित जीव की विग्रहगति से तिर्यंच पंचेन्द्रियों और मनुष्यों में उत्पत्ति असंभव है। एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय के सिवाय शेषं स्थानों में तीन भंग कहने चाहिए। ज्ञान द्वार समाप्त ॥
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