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अट्ठाईसवाँ आहार पद - द्वितीय उद्देशक - कषाय द्वार
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माणकसाईसु मायाकसाईसु य देवणेरइएसु छब्भंगा, अवसेसाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, लोभकसाईसुणेरइएसु छब्भंगा अवसेसेसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो अकसाई जहा णोसण्णी-णोअसण्णी॥ दारं ७॥६५४॥
भावार्थ - मान कषाय वाले और माया कषाय वाले देवों और नैरयिकों में छह भंग पाये जाते हैं। जीव और एकेन्द्रियों को छोड़ कर शेष जीवों में तीन भंग पाये जाते हैं। लोभ कषाय वाले नैरयिकों में छह भंग होते हैं। जीव और एकेन्द्रियों को छोड़कर शेष जीवों में तीन भंग पाये जाते हैं। अकषायी का कथन नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी के समान करना चाहिए। द्वार ७॥
विवेचन - मान कषायी और माया कषायी में एक वचन की अपेक्षा पूर्ववत् एक-एक भंग होता है। बहुवचन की अपेक्षा मान कषायी और माया कषायी देवों और नैरयिकों में ६-६ भंग समझने चाहिये। नैरयिक भवस्वभाव से ही बहु क्रोध वाले और देव बहु लोभ वाले होते हैं इसलिए देवों और नैरयिकों में मान कषाय और माया कषाय स्वल्प होते हैं अत: पूर्व में कहे अनुसार छह भंग होते हैं। जीव पद में और पृथ्वी आदि पदों में प्रत्येक की अपेक्षा अन्य भंग नहीं होते क्योंकि आहारक और अनाहारक मान कषायी और माया कषायी उन-उन स्थानों में सदैव बहुत होते हैं शेष स्थानों में तीन भंग समझने चाहिये।
लोभ कषाय सूत्र में भी एकवचन में पूर्ववत् ही कहना किन्तु बहुवचन की अपेक्षा लोभकषायी नैरयिकों में छह भंग होते हैं क्योंकि उनमें लोभ कषाय अल्प है शेष जीव और एकेन्द्रिय के सिवाय के स्थानों में तीन तीन भंग जानना, देवों में भी तीन भंग समझना क्योंकि उनमें लोभ की अधिकता होने से छह भंग संभव नहीं है। जीव और एकेन्द्रियों में पूर्व की तरह एक ही भंग 'आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी होते हैं' होता है।
अकषायी नो-संज्ञी नो-असंज्ञी की तरह कहना तात्पर्य यह है कि अकषायी मनुष्य और सिद्ध होते हैं। मनुष्यों में उपशांत कषाय आदि वाले ही अकषायी होते हैं शेष तो सकषायी ही होते हैं। इसलिए इनके भी तीन पद होते हैं - सामान्य से जीव पद, मनुष्य पद और सिद्धपद। उनमें सामान्य जीवपद और मनुष्य पद में एक वचन की अपेक्षा 'कदाचित् आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक होता है' यह एक भंग कहना। सिद्ध पद में अनाहारक ही होता है। बहुवचन की अपेक्षा जीवपद में आहारक भी होते हैं अनाहारक भी होते हैं क्योंकि केवलज्ञानी आहारक और सिद्ध अनाहारक सदैव बहुत होते हैं। मनुष्य पद में तीन भंग इस प्रकार कहने चाहिये - १. सभी आहारक होते हैं २. अथवा बहुत आहारक होते हैं और एक अनाहारक होता है ३. अथवा बहुत आहारक और बहुत अनाहारक !' होते हैं। कषाय द्वार समाप्त॥
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