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प्रज्ञापना सूत्र
पदों में तीन भंग इस प्रकार होते हैं - १. सभी आहारक होते हैं २. अथवा सभी आहारक और एक अनाहारक होता है अथवा ३ बहुत आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं। जीव और एकेन्द्रिय के सिवाय ये तीन. भंग समझने चाहिए इसीलिए सूत्रकार ने 'जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो' पाठ दिया है। कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या वाले जीवों में भी समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर ये तीन भंग समझने चाहिये। .. तेउलेसाए पुढविआउवणस्सइकाइयाणं छब्भंगा, सेसाणं जीवाइओ तियभंगो जेसिं अत्थि तेउलेसा, पम्हलेसाए सुक्कलेसाए य जीवाइओ तियभंगो, अलेसा जीवा मणुस्सा सिद्धा य एगत्तेण वि पुहुत्तेण वि णो आहारगा अणाहारगा ॥दारं ४॥६५१॥
भावार्थ - तेजोलेश्या की अपेक्षा पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिकों में छह भंग और शेष जीवों में जिनमें तेजोलेश्या पाई जाती है उनमें तीन भंग कहने चाहिये। पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या वाले जीवों में तीन भंग पाये जाते हैं। लेश्या रहित जीव, मनुष्य और सिद्ध एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा आहारक नहीं होते किन्तु अनाहारक ही होते हैं ॥ चतुर्थद्वार॥
विवेचन - तेजोलेश्या वाले भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, सौधर्म और ईशान देवों की पृथ्वी, पानी और वनस्पति में उत्पत्ति होती है जैसा कि भगवती, प्रज्ञापना की चूर्णि में कहा है कि - "जेण तेसु भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय सोहम्मीसाणया देवा उववजवंति तेण तेउलेस्सा लब्भइ" अतः तेजो लेश्या वाले पृथ्वी-अप्-वनस्पति जीवों में छह भंग इस प्रकार पाते हैं - १. सभी आहारक होते हैं अथवा २. सभी अनाहारक होते हैं अथवा ३. एक आहारक होता है और एक अनाहारक होता है ४. अथवा एक आहारक होता है और सभी अनाहारक होते हैं ५. अथवा सभी आहारक होते हैं और एक अनाहारक होता है ६. अथवा बहुत आहारक होते हैं और बहुत अनाहारक होते हैं। नरक के जीवों, तेउकायिकों, वायुकायिकों और तीन विकलेन्द्रियों में तेजोलेश्या नहीं होती है अतः इनको छोड़ कर शेष तेजोलेश्या वाले जीवों में तीन-तीन भंग कहने चाहिये।
पद्म लेशी और शुक्ललेशी जीवों में एक वचन की अपेक्षा कदाचित् आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक होता है यह एक भंग और बहुवचन की अपेक्षा तीन भंग इस प्रकार होते हैं- १. सभी आहारक होते हैं २. अथवा बहुत आहारक होते हैं और एक अनाहारक होता है ३. अथवा बहुत आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं।
लेश्या रहित जीव, मनुष्य और सिद्ध एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा अनाहारक ही होते हैं, आहारक नहीं। लेश्या द्वार समाप्त॥
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