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प्रज्ञापना सूत्र
भंग लम्बे काल से उत्पन्न हुए और तत्काल उत्पन्न होते हुए बहुत से असंज्ञी नैरयिक होते हैं तब समझना चाहिए। __ ये छहों भंग ही असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक भी समझ लेना चाहिए। एकेन्द्रियों में भंग का अभाव है अर्थात् पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पति रूप एकेन्द्रियों में दूसरे अन्य भंग नहीं होते हैं एक ही भंग होता है वह इस प्रकार है- 'आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी होते हैं। उनमें आहारक बहुत होते हैं यह सुप्रसिद्ध हैं। अनाहारक भी प्रतिसमय पृथ्वी, अप्, तैजस्
और वायु प्रत्येक में असंख्याता और वनस्पति में प्रतिसमय सदैव अनन्ता होते हैं और वे भी बहुत हैं। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और तिर्यंच पंचेन्द्रिय में प्रत्येक में तीन भंग इस प्रकार समझने चाहिये - १. सभी आहारक होते हैं २. अथवा बहुत आहारक होते हैं और एक अनाहारक होता है ३. बहुत से आहारक होते हैं और बहुत से अनाहारक होते हैं।
जब बेइन्द्रिय आदि में उत्पन्न होता हुआ एक भी जीव विग्रह गति में नहीं होता है और पूर्वोत्पन्न सभी जीव आहारक होते हैं तब प्रथम भंग होता है २. जब बेइन्द्रिय आदि एक जीव विग्रहगति में हो
और पूर्वोत्पन्न सभी आहारक होते हैं और उत्पन्न होता हुआ एक जीव अनाहारक होता है तब दूसरा भंग होता है। जब उत्पन्न होते हुए बेइन्द्रिय आदि जीव बहुत होते हैं तब तीसरा भंग होता है। मनुष्यों और वाणव्यंतर देवों में नैरयिकों की तरह छह भंग कह देने चाहिये। __णोसण्णी-णोअसण्णी णं भंते! जीवे किं आहारए अणाहारए?
गोयमा! सिय आहारए, सिय अणाहारए य, एवं मणूसे वि। सिद्धे अणाहारए, पुहुत्तेणं णोसण्णी-णोअसण्णी जीवा आहारगा वि अणाहारगा वि, मणूसेसु तियभंगो, सिद्धा अणाहारगा॥दारं ३॥६५०॥ .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नो संज्ञी-नो असंज्ञी जीव आहारक होता है या अनाहारक? ___उत्तर - हे गौतम! नो संज्ञी-नो असंज्ञी कदाचित् आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक होता है। इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी कहना चाहिए। सिद्ध जीव अनाहारक होता है। बहुवचन की अपेक्षा नो संज्ञी-नो असंज्ञी जीव आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी होते हैं। मनुष्यों में तीन भंग होते हैं और बहुत से सिद्ध अनाहारक होते हैं ॥ तृतीय द्वार॥
विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में नोसंज्ञी-नो असंज्ञी जीव में आहारकता-अनाहारकता का निरूपण किया गया है। नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव कदाचित् आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक होता है क्योंकि केवलज्ञानी समुद्घात अवस्था के अभाव में आहारक होता है और शेष अवस्था में अनाहारक होता है। यह अनाहारकपना समुद्घात की अवस्था में अयोगीपने की अवस्था में और सिद्ध अवस्था में होता है।
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