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प्रज्ञापनां सूत्र
लोमाहारा एगिदिया उणेरइय सुरगणा चेव। सेसाणं आहारो लोमे पक्खेवओ चेव॥४॥
- लोमाहार वाले एकेन्द्रिय, नैरयिक और देव हैं शेष सभी जीवों के लोमाहार और प्रक्षेपाहार होता है॥४॥ .
ओयाहारा मणभक्खिणो य, सब्वे वि सुरगणा होति। सेसा हवंति जीवा लोमे पक्खेवओ चेव॥५॥
- सभी प्रकार के देव ओज आहारी और मनोभक्षी होते हैं शेष जीव लोमाहारी और प्रक्षेपाहारी होते हैं ॥५॥
अब कौनसा आहार आभोग निर्वर्तित-इच्छा पूर्वक है और कौनसा आहार अनाभोगनिर्वर्तितइच्छा रहित किया गया है इस प्रश्न के उत्तर में कहा है।
देवों को अनाभोग निर्वर्तित ओज आहार होता है और वह अपर्याप्तावस्था में होता है। लोमाहार भी अनाभोगनिवर्तित होता है पर वह पर्याप्तावस्था में होता है। मन से भक्षण करने रूप आहार आभोगनिवर्तित है और वह पर्याप्तावस्था में होता है अन्य जीवों को नहीं होता। सभी जीवों को अनाभोग निर्वर्तित ओज आहार अपर्याप्तावस्था में होता है और पर्याप्तावस्था में लोमाहार होता है। नैरयिकों के अलावा शेष जीवों को लोमाहार अनाभोग निर्वर्तित होता है और नैरयिक को लोमाहार आभोग निर्वर्तित भी होता है। बेइन्द्रिय से लगाकर मनुष्यों तक सभी जीवों को प्रक्षेपाहार होता है और वह आभोगनिवर्तित-इच्छा पूर्वक ही होता है।
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॥आहार पद का प्रथम उद्देशक समाप्त॥
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