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कइ णं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ?
गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ। तंजहा णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं । एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं ।
भावार्थ- प्रश्न हे भगवन्! कर्म प्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ?
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उत्तर - हे गौतम! कर्म प्रकृतियाँ आठ कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं- ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । इसी प्रकार नैरयिकों से लगा कर यावत् वैमानिकों तक आठ कर्म प्रकृतियाँ कही गई हैं। जीवे णं भंते! णाणावरणिजं कम्मं वेयमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ?
छव्वीसइमं कम्मवेयबंध पयं
छव्वीसवां कर्म वेद बन्ध पद
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गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठन्निहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए बा । भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है ?
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उत्तर - हे गौतम! जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता हुआ सात कर्म प्रकृतियों का बंध करता है, आठ कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है, छह कर्म प्रकृतियों का बंध करता है या एक कर्म का बंध करता है।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता हुआ जीव कितने कर्मों का बंध करता है इसका निरूपण किया गया है- १. कोई जीव आयु को छोड़ कर सात कर्मों का बंध करता है २. कोई आठों कर्मों का बंध करता है ३. कोई आयुष्य और मोह को छोड़ कर छह कर्मों का बंध करता है ४. उपशांत मोह और क्षीण मोह वाले जीव केवल एक वेदनीय कर्म का बन्ध करते हैं।
रइए णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं वेएमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा । एवं जाव वेमाणिए, णवरं मणूसे जहा जीवे ।
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भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! नैरयिक जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता हुआ सात कर्मों का या आठ
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