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________________ पच्चीसवां कर्म बंध वेद पद उत्तर - हे गौतम! वेदनीय कर्म को बांधता हुआ जीव आठ कर्म प्रकृतियों का सात कर्म प्रकृतियों का अथवा चार कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है। इसी प्रकार मनुष्य के विषय में कहना चाहिए। शेष नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिक तक जीव एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं। विवेचन - समुच्चय एक जीव वेदनीय कर्म बांधता हुआ आठ, सात या चार कर्म प्रकृतियाँ वेदा है । इसी तरह मनुष्य के विषय में कहना । नैरयिक आदि २३ दंडक के एक जीव वेदनीय कर्म बांधते हुए आठों ही कर्म वेदते हैं। १४७ समुच्चय जीव एक वचन की अपेक्षा से वेदनीय कर्म का बंध करते हुए सात, आठ या चार कर्म प्रकृतियों को वेदते हैं। सात कर्म का वेदन करने वाले उपशांत मोह और क्षीण मोह वाले होते हैं क्योंकि उनमें मोहनीय का वेदन नहीं होता। पहले मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर दसवें सूक्ष्म संपराय गुणस्थान वाले जीव आठों ही कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं। चार कर्मों का वेदन करने वाले जीव सयोगी और अयोगी केवली होते हैं क्योंकि उनके चार घाती कर्मों का उदय नहीं होता है। जीवाणं भंते! वेयणिज्जं कम्मं बंधमाणा कइ कम्मपगडीओ वेदेंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होजा अट्ठविहवेदगा य चउव्विहवेदगा य १, अहवा अट्ठविहवेदगा य चउव्विहवेदगा य सत्तविहवेएए य २, अहवा अट्ठविहवेदगा य चविहवेदगाय सत्तविहवेदगा य ३, एवं मणूसा विभाणियव्वा ॥ ६३७ ॥ ॥ पण्णवणाए भगवईए पणवीसइमं कम्मबंधवेयपयं समत्तं ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बहुत जीव वेदनीय कर्म को बांधते हुए कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं ? उत्तर - हे गौतम! १. सभी जीव वेदनीय कर्म को बांधते हुए आठ या चार कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं, २. अथवा बहुत जीव आठ या चार कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं और कोई एक जीव सात कर्म प्रकृतियों का वेंदन करते हैं ३. अथवा बहुत जीव आठ, चार या सात कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं। इसी प्रकार बहुत से मनुष्यों के वेदन संबंधी कथन करना चाहिए। विवेचन - समुच्चय बहुत जीव वेदनीय कर्म बांधते हुए आठ, सात अथवा चार कर्म प्रकृतियाँ वेदते हैं। आठ और चार कर्म प्रकृतियाँ वेदने वाले शाश्वत हैं और सात कर्म प्रकृतियां वेदने वाले अशाश्वत हैं। इनके तीन भंग होते हैं १. सभी आठ और चार कर्म वेदने वाले २. आठ व चार कर्म वेदने वाले बहुत सात कर्म वेदने वाला एक ३. आठ व चार कर्म वेदने वाले बहुत सात कर्म वेदने वाले बहुत । इसी तरह बहुत मनुष्य का कहना । नैरयिक आदि तेईस दंडक के बहुत जीव वेदनीय कर्म बांधते हुए आठ कर्म वेदते हैं। ॥ प्रज्ञापना भगवती सूत्र का पच्चीसवां कर्मबन्धवेदपद सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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