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प्रज्ञापना सूत्र
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किया है, उसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म को बांधते हुए जीव आदि के विषय में एकत्व-एक वचन और बहुत्व-बहुवचन की अपेक्षा से उन कर्म प्रकृतियों के बन्ध का कथन करना चाहिए।
विवेचन - जिस प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म बन्ध के साथ अन्य कर्म प्रकृतियों के बंध का कथन किया है उसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म बन्ध के साथ अन्य कर्म प्रकृतियों का बन्ध समझ लेना चाहिए।
वेयणिज० बंधमाणे जीवे कइ कम्मपडीओ बंधइ?
गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा। एवं मणूसे वि।सेसा णारगाइया सत्तविहबंधगा वा अट्ठविहबंधगा वा जाव वेमाणिए।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वेदनीयकर्म को बांधता हुआ जीव कितनी कर्म प्रकृतियाँ बांधता है?
उत्तर - हे गौतम! वेदनीय कर्म को बांधता हुआ जीक सात कर्म प्रकृतियों का, आठ कर्म प्रकृतियों का, छह कर्म प्रकृतियों का अथवा एक प्रकृति का बन्धक होता है। इसी प्रकार मनुष्य के विषय में समझना चाहिए। शेष नैरयिक आदि सात कर्म बांधने वाले और आठ कर्म बांधने वाले होते हैं। वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार समझना चाहिए।
जीवाणं भंते! वेयणिज कम्मं पुच्छा?
गोयमा! सव्वे वि ताव होजा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य १, अहवा सत्तविह बंधगा य अट्ठविह बंधगा य एगविह बंधगा य छबिहबंधए य . २, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगा य३। अवसेसा णारगाइया जाव वेमाणिया जाओ णाणावरणं बंधमाणा बंधति ताहिं भाणियव्वा। ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बहुत जीव वेदनीय कर्म को बांधते हुए कितनी कर्म प्रकृतियाँ बांधते हैं?
उत्तर - हे गौतम! सभी जीव सात प्रकृतियों के बान्धने वाले, आठ प्रकृतियों के बान्धने वाले, एक प्रकृति बान्धने वाले १, अथवा बहुत जीव सात प्रकृतियों के बांधने वाले, आठ प्रकृतियों के बांधने वाले, एक प्रकृति को बांधने वाले और एक जीव छह प्रकृतियों को बान्धने वाला होता है अथवा बहुत सात कर्म प्रकृतियों को बान्धने वाले, आठ कर्म प्रकृतियों को बान्धने वाले, एक प्रकृति को बान्धने वाले
और छह कर्म प्रकृतियों को बांधने वाले होते हैं। शेष नैरयिक आदि से वैमानिक पर्यन्त ज्ञानावरणीय को बांधते हुए जितनी कर्म प्रकृतियों का बंधन करते हैं, उतनी का बन्ध यहाँ भी कहना चाहिए।
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