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________________ Jain Education Internationa For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org क्रम ११. १२. १३. १४. १५. १६. २३. कर्मप्रकृति का नाम संज्वलनमान मोहनीय १७-१८. हास्य और रति मोहनीय २४. संज्वलनमाया मोहनीय संज्वलनलोभ मोहनीय स्त्रीवेद मोहनीय १९-२२. अरति, भय, शोक, जुगुप्सा २५. २६. पुरुषवेद मोहनीय नपुंसकवेद मोहनीय नारकायु तिर्यंचायु मनुष्यायु देवायु जघन्य स्थिति एक मास अर्द्ध मास अन्तर्मुहूर्त्त पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का ८ वर्ष की भाग पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का भाग पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का भाग पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का अन्तर्मुहूर्त्त अधिक १० हजार वर्ष अन्तर्मुहूर्त भाग अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अधिक १० हजार वर्ष उत्कृष्ट स्थिति ४० कोड़ाकोड़ी सागरोपम ४० कोड़ाकोड़ी सागरोपम ४० कोड़ाकोड़ी सागरोपम १५ कोड़ाकोड़ी सागरोपम १० कोड़ाकोड़ी सागरोपम २० कोड़ाकोड़ी सागरोपम १० कोड़ाकोड़ी सागरोपम २० कोड़ाकोड़ी सागरोपमं करोड़ पूर्व का तीसरा भाग अधिक ३३ सागरोपम करोड़ पूर्व का तीसरा भाग अधिक ३ पल्योपम 11 11 ?? करोड़ पूर्व के तृतीय भाग अधिक ३३ सागरोपम की अबाधाकाल ४००० वर्ष ४००० वर्ष ४००० वर्ष १५०० वर्ष १००० वर्ष २००० वर्ष १००० वर्ष २००० वर्ष निषेककाल उत्कृष्ट स्थिति में से ४ हजार वर्ष कम "1 11 " 11 "" " " 11 उत्कृष्टस्थिति में १५०० वर्ष कम उत्कृष्टस्थिति में १००० वर्ष कम उत्कृष्ट स्थिति में दो हजार वर्ष कम उत्कृष्ट स्थिति में से १००० वर्ष कम उत्कृष्ट स्थिति में २ हजार वर्ष कम ११२
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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