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प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव की सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हुई हैं?
उत्तर - हे गौतम! नहीं हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! अट्ठ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उसकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं। केवइया पुरेक्खडा? . गोयमा! णत्थि॥४५६॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी?' उत्तर - हे गौतम! उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होंगी।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में एक जीव में परस्पर अतीत (भूत काल) वर्तमान (बद्धेल्लगा) और भविष्य (पुरेक्खडा) काल की द्रव्येन्द्रियों का कथन किया गया है जो इस प्रकार हैं -
एक-एक नारकी के नैरयिक ने नैरयिक रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त की, वर्तमान में आठ हैं और भविष्य में किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी। जो नरक से निकल कर बाद में वापिस नरक में उत्पन्न नहीं होगा उसके भविष्य काल सम्बन्धी द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होंगी। जो नरक से निकल कर बाद में वापिस नैरयिक होगा उसके आठ अथवा सोलह अथवा चौबीस यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी। एक-एक नारकी के नैरयिक ने संज्ञी मनुष्य और पाँच अनुत्तर विमान को छोड़ कर शेष सभी स्थानों में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके एकेन्द्रिय में १, २, ३ बेइन्द्रिय में २, ४, ६ तेउन्द्रिय में ४, ८, १२ चउरिन्द्रिय में ६, १२, १८ और पंचेन्द्रिय में ८, १६, २४ यावत् संख्यात, असंख्यात अनन्त होंगी। एक एक नारकी के नैरयिक ने संज्ञी मनुष्य रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान काल में नहीं हैं और भविष्य काल में नियम पूर्वक ८ या १६ या २४ यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी। एक-एक नारकी के नैरयिक ने पांच अनुत्तर विमान रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में नहीं की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी और किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसमें चार अनुत्तर विमान रूप में आठ अथवा सोलह होंगी और सर्वार्थसिद्ध रूप में आठ होंगी। भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी देवता नारकी की तरह कहना चाहिए।
पहले देवलोक से नवग्रैवेयक तक के एक-एक देव ने स्वस्थान और परस्थान की अपेक्षा
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