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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद- द्वितीय उद्देशक - अनेक जीवों की अपेक्षा
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द्रव्येन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त कीं, वर्तमान में स्व स्थान में आठ हैं और परस्थान की अपेक्षा नहीं है, भविष्य में किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके आठ अथवा सोलह अथवा चौबीस यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी। पहले देवलोक से नवग्रैवेयक तक के एक-एक देवता ने चार अनुत्तर विमान रूप से द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में किसी ने कीं, किसी ने नहीं कीं, जिसने कीं उसने आठ कीं, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके आठ अथवा सोलह होंगी। पहले देवलोक से नवग्रैवेयक तक के एक-एक देवता ने सर्वार्थसिद्ध के देव रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में नहीं की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी उसके आठ होंगी। पहले देवलोक से नवग्रैवेयक तक के एक-एक देव ने वैमानिक देव और संज्ञी मनुष्य के सिवा शेष सभी स्थानों में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त कीं, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके एकेन्द्रिय में १, २, ३, बेइन्द्रिय में २, ४, ६ तेइन्द्रिय में ४, ८, १२ चउरिन्द्रिय में ६, १२, १८ और पंचेन्द्रिय में ८, १६, २४ यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी। पहले देवलोक से नवग्रैवेयक तक के एक-एक देवता ने संज्ञी मनुष्य रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त की, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में नियमपूर्वक ८, १६, २४ यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी।
चार अनुत्तर विमान के एक-एक देवता ने स्वस्थान संबंधी द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में किसी ने कीं किसी ने नहीं कीं। जिसने कीं उसने आठ कीं। वर्तमान में आठ द्रव्येन्द्रियाँ हैं और भविष्य में किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी आठ होंगी। चार अनुत्तर विमान के एक-एक देवता ने सर्वार्थसिद्ध देवता के रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में नहीं की, वर्तमान में नहीं है, भविष्य में किसी के होंगी किसी नहीं होंगी, जिसके होंगी आठ होंगी। चार अनुत्तर विमान के एक-एक देवता ने पहले देवलोक से नवग्रैवेयक तक के देव रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त कीं, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी उसके ८ अथवा १६ अथवा २४ यावत् संख्यात होंगी। चार अनुत्तर विमान के एक-एक देवता ने संज्ञी मनुष्य रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त कीं, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में नियमपूर्वक ८, १६, २४ यावत् संख्यात करेगा । चार अनुत्तर विमान के एक-एक देवता ने संज्ञी मनुष्य और वैमानिक देवता के सिवाय सभी स्थानों में द्रव्येन्द्रियां अतीत काल में अनन्त कीं, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में नहीं होंगी।
सर्वार्थसिद्ध के एक-एक देवता ने स्व स्थान की अपेक्षा द्रव्येन्द्रियाँ अतीत काल में नहीं कीं, वर्तमान काल में आठ हैं और भविष्य काल में नहीं होंगी। सर्वार्थसिद्ध के एक-एक देवता ने चार अनुत्तर विमान रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में किसी ने कीं किसी ने नहीं कीं, जिसने की उसने आठ कीं, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में नहीं होंगी। सर्वार्थसिद्ध के एक-एक देवता ने चार अनुत्तर विमान
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