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________________ ८८ प्रज्ञापना सूत्र Jain Education International और संज्ञी मनुष्य के सिवाय शेष सभी स्थानों में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त कीं, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में नहीं होंगी। सर्वार्थसिद्ध के एक-एक देवता ने संज्ञी मनुष्य के रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त कीं, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में नियमपूर्वक आठ होंगी। पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय, संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय और असंज्ञी मनुष्य इन ग्यारह स्थानों के एक-एक जीव ने स्व स्थान की अपेक्षा द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त कीं, वर्तमान में स्व स्थान की अपेक्षा एकेन्द्रिय में १, बेइन्द्रिय में २, तेइन्द्रिय में ४, चउरिन्द्रिय में ६, पंचेन्द्रिय ८ द्रव्येन्द्रियाँ हैं पर स्थान की अपेक्षा नहीं है, भविष्य में स्वस्थान की अपेक्षा किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी जिसके होंगी उसके एकेन्द्रिय में १, २, ३, बेइन्द्रिय में २, ४, ६, तेइन्द्रिय में ४, ८, १२, चउरिन्द्रिय में ६, १२, १८ और पंचेन्द्रिय में ८, १६, २४, यावत् संख्यात, असंख्यात अनंत होंगी। उक्त ग्यारह बोलों के एक-एक जीव ने पांच अनुत्तर विमान और संज्ञी मनुष्य के सिवाय सभी स्थानों द्रव्येन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त कीं, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके एकेन्द्रिय में १, २, ३, बेइन्द्रिय में २, ४, ६, तेइन्द्रिय में ४, ८, १२, चरिन्द्रिय में ६, १२, १८ और पंचेन्द्रिय में ८, १६, २४ यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी। उक्त ग्यारह बोलों के एक-एक जीव ने पांच अनुत्तर विमान के देवता रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत काल में नहीं : कीं, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके चार अनुत्तर विमान रूप में आठ अथवा सोलह होंगी और सर्वार्थसिद्ध के देव रूप में आठ होंगी। उक्त ग्यारह बोलों के एक-एक जीव ने संज्ञी मनुष्य रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त कीं, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में नियमपूर्वक ८, १६, २४ यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी। संज्ञ मनुष्य के एक-एक जीव ने स्वस्थान की अपेक्षा द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त कीं, वर्तमान में आठ हैं और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके ८ या १६ या २४ यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी। एक-एक संज्ञी मनुष्य ने पांच अनुत्तर विमान और संज्ञी मनुष्य के सिवा शेष सभी स्थानों की अपेक्षा द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में अनन्त कीं, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके एकेन्द्रिय की अपेक्षा १, २, ३, बेइन्द्रिय की अपेक्षा २, ४, ६, तेइन्द्रिय की अपेक्षा ४, ८, १२ चउरिन्द्रिय की अपेक्षा ६, १२, १८ और पंचेन्द्रिय की अपेक्षा ८, १६, २४ यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी। एक-एक संज्ञी मनुष्य ने पांच अनुत्तर विमान के देवता रूप में द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में किसी ने की, किसी ने नहीं की। जिसने कीं उसने ' चार अनुत्तर विमान के देव रूप में ८ अथवा १६ की और सर्वार्थसिद्ध देवता के रूप में ८ की। वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी उसके चार अनुत्तर विमान के देव रूप में ८ अथवा १६ होंगी और सर्वार्थसिद्ध के देव रूप में आठ होंगी। ÖHÖHÖHÖHÖN ÖNÖKÖKÖKÖKÜ ÖNÖKÖKÖKÜVŐKÖYÜ For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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