SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - अनेक जीवों की अपेक्षा httwww एवं मणूसवजं जाव गेवेजगदेवत्ते, णवरं मणूसत्ते अतीता अणंता। भावार्थ - इसी प्रकार असुरकुमारत्व से लेकर मनुष्यत्व को छोड़ कर यावत् ग्रैवेयक देवत्व रूप में एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव की अतीत आदि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता समझनी चाहिए। विशेषता यह है कि एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव की मनुष्यत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! णथि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! अट्ठ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी? उत्तर - हे गौतम! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ होंगी। विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते अतीता कस्सइ अस्थि, कस्सइ णत्थि, जस्स अस्थि अट्ठ। __ भावार्थ - एक-एक सर्वार्थसिद्ध देव की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजितदेवत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की हुई हैं और किसी की नहीं हुई हैं। जिसकी हुई हैं, वे आठ हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! णत्थि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उसकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! नहीं हैं। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! णथि। 'भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी? .. उत्तर - हे गौतम! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होंगी। एगमेगस्स णं भंते! सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवइया दव्विंदिया अतीता? . गोयमा! णत्थि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy