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________________ ८४ यति नि प्रज्ञापना सूत्र गोयमा ! णत्थि । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एक-एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की सर्वार्थसिद्धदेवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक-एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की सर्वार्थसिद्धदेवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! णत्थि । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। केवइया पुरेक्खडा ? गोमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्स अत्थि अट्ठ | भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी ? उत्तर - हे गौतम! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होंगी, किसी की नहीं होंगी। जिसकी होंगी, वे आठ होंगी। एगमेगस्स णं भंते! सव्वट्टसिद्धगदेवस्स णेरइयत्ते केवइया दव्विदिया अतीता ? गोयमा! अनंता । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव की नैरयिकपन में कितनी द्रव्येन्द्रियाँ अतीत में हुई हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक-एक सर्वार्थसिद्ध देव की नैरयिकपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! णत्थि । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उसकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! उसकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। केवइया पुरेक्खडा ? गोयमा ! णत्थि । ÖHÖN ÖHÖHÖHÖHÖN ÖHÖNỘI भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! कितनी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ होंगी ? उत्तर - हे गौतम! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होंगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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