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________________ ८३ पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - अनेक जीवों की अपेक्षा . ८३ भावार्थ - इन्हीं की प्रत्येक की मनुष्यत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं, बद्ध नहीं हैं, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ, सोलह या चौवीस होंगी, अथवा संख्यात होंगी। वाणमंतरजोइसियत्ते जहा णेरइयत्ते। भावार्थ - इन्हीं की प्रत्येक की वाणव्यंतर एवं ज्योतिषी देवत्व के रूप में अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता नैरयिकत्व रूप की अतीत आदि की वक्तव्यता के अनुसार कहना चाहिए। सोहम्मगदेवत्ते अतीता अणंता, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्स अत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखिज्जा वा। भावार्थ - इन चारों की प्रत्येक की सौधर्म देवत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं, बद्ध नहीं हैं और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होंगी, किसी की नहीं होंगी। जिसकी होंगी, उसकी आठ, सोलह, चौवीस अथवा संख्यात होंगी। : एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते। भावार्थ - इन्हीं चारों की प्रत्येक की ईशानदेवत्व से लेकर यावत् ग्रैवेयकदेवत्व के रूप में अतीत आदि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता इसी प्रकार समझनी चाहिए। विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते अतीता कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्स अस्थि अट्ट। केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! अट्ठ। भावार्थ - इन चारों की प्रत्येक की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की हुई हैं और किसी की नहीं हुई हैं। जिसकी हुई हैं उसकी आठ हुई हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं? . उत्तर - हे गौतम! बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि जस्स अत्थि अट्ठ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी? उत्तर - हे गौतम! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होगी और किसी की नहीं होंगी, जिसकी होंगी, उसके आठ होंगी। . - एगमेगस्स णं भंते! विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवइया दविदिया अतीता? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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