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प्रज्ञापना सूत्र
फासिंदियओगाहणा, एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, णवरं जस्स जइ इंदिया अत्थि० ७ ॥ ४४९ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन्द्रिय- अवग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! इन्द्रियावग्रह पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - श्रोत्रेन्द्रिय अवग्रह यावत् स्पर्शनेन्द्रिय - अवग्रह । इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक पूर्ववत् कहना चाहिए । विशेषता यह है कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने ही अवग्रह समझने चाहिए।
विवेचन - इन्द्रिय से होने वाले सामान्य ज्ञान को इन्द्रिय- अवग्रह कहते हैं । ज्ञानोपयोग में सर्वप्रथम अवग्रह होता है । अवग्रह मन से भी होता है किन्तु यहाँ इन्द्रियों से होने वाले अवग्रह के संबंध में ही प्रश्नोत्तर है ।
आठवां इन्द्रिय अवाय द्वार
कइविहे णं भंते! इंदियअवाए पण्णत्ते ?
गोयमा ! पंचविहे इंदियअवाए पण्णत्ते । तंजहा- सोइंदियअवाए जाव फासिंदियअवाए। एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, णवरं जस्स जइ इंदिया
अत्थि० ८ । भावार्थ:
- प्रश्न - हे भगवन् ! इन्द्रिय- अवाय कितने प्रकार का कहा गया हैं ?
उत्तर - हे गौतम! इन्द्रिय- अवाय पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - श्रोत्रेन्द्रिय अवाय से लेकर यावत् स्पर्शनेन्द्रिय- अवाय । इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक अवाय के विषय में कहना चाहिए। विशेषता यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने ही अवाय कहने चाहिए ।
विवेचन - अवग्रह ज्ञान से अवगृहीत - सामान्य रूप से जाने हुए और ईहा ज्ञान से ईहित- विचार किये हुए अर्थ का निर्णय रूप जो अध्यवसाय है वह अपाय (अवाय) कहलाता है। जैसे-यह शंख का ही शब्द है अथवा यह सारंगी का ही स्वर है इत्यादि रूप निश्चयात्मक निर्णय होना ।
नौवां ईहा द्वार
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कइविहाणं भंते! ईहा पण्णत्ता ?
गोयमा! पंचविहा ईहा पण्णत्ता । तंजहा सोइंदियईहा जाव फासिंदियईहा । एवं जाव वेमाणियाणं, णवरं जस्स जइ इंदिया० ९ ।
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